हमें तो अपनों ने लूटा , औरों में कहाँ दम था ???
नमस्कार दोस्तों ,
कैसे हैं आप ? , उम्मीद हैं ज़िन्दगी सही से चल रही होगी , मैं एक बार फिर हाज़िर हूँ एक नए ब्लॉग के साथ , तो आज के ब्लॉग का टॉपिक तो आपने देख ही लिया होगा , और सोचें होंगे की ये शायरी तो आपने सुन रखी है , जी हाँ ये उसी शायरी की कुछ पंक्तियाँ हैं |
दोस्तों अभी हाल ही में आप सभी ने कोलकाता में हुए रेप - मर्डर केस के बारे में सुना ही होगा , सभी लोगों ने इस पर अपने - अपने तरीकों से संवेदना जताई , कुछ लोगों के समूहों ने इसका विरोध प्रदर्शन भी किया , कई राज्यों में महिलाएं सड़क पर उतरकर इसके खिलाफ एक मुहीम छेड़ दिए हैं , मैं भी इसके बारे में अखबार में पढ़ रहा था , पर मेरी नज़र एक आर्टिकल पर पड़ी , जिसका यही शीर्षक था की " क्यों जब चीज़ें बहुत बदतर हो जाती है , तब लोगों को ख्याल आता है ?? "
एक प्रसिद्ध विचारक का विचार पढ़ा था मैंने , जिसमे लिखा था :- " दुनिया में हर इंसान हैवानियत की हद तक पहुँच जाता , अगर मजहब और कानूनों में उसकी सज़ा न होती | "
सभी लोगों ने ये अपराध करने वाले लोगों पर अपना गुस्सा जाहिर किया , कठोर सजा की मांग की , पर रुकिए जरा ,
सवाल तो वही हैं न दोस्तों , क्यों एक इंसान , राक्षस की तरह व्यवहार कर रहा ?
एक इंसान के अंदर इतनी नफरत कैसे भर गयी की किसी दूसरे इंसान के साथ इतना गलत कर दिया ?
दोस्तों हम थोड़ा पीछे जाते हैं , और बचपन से शुरू करते हैं , क्योंकि इस गुस्से और नफरत की जड़ें बचपन में ही उनके अंदर अपनी जगह बना देती है , और इसमें साथ देने वाले हमारे आसपास के ही लोग हैं , जिनको हमने अधिकार दिए , हमारी ज़िन्दगी में दाखिल होने के लिए , और सिर्फ उनलोग की बात नहीं बल्कि 10 में से 9 लोगों में यही जड़े पनप रही होती है , कैसे ? आइये देखते हैं |
1. हमारा परिवार :-
अब आप कहेंगे , परिवार से क्या गलत होगा ? , मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ , अगर माँ बाप भगवान के बराबर है तो उनके पाले गए बच्चे शैतान कैसे निकल गए ? कभी सोचा आपने ?
कहीं न कहीं हमारा परिवार भी तो हमारी हिंसा , गुस्सा , नफरत के लिए जिम्मेदार है |
अगर एक बच्चा जन्म होता है , तो सबसे पहले क्या पूछा जाता है ? लड़का हुआ या लड़की ? सही है ? और एक लड़के और लड़की के बीच अंतर कैसे बताते हैं ? सिर्फ जननांग के द्वारा , इसका मतलब क्या हुआ ?
इसका मतलब ये हुआ की हमारी पहचान ही हमारे जननांगों पर आधारित हैं , और सभी सोचते हैं इसमें क्या दिक्कत है , क्यों दिक्कत नहीं है ? , असली भेदभाव तो घरों से ही शुरू होता है , एक लड़का और लड़की में अंतर तो घर पर ही सीखा दिया जाता है , फिर जब अंतर ही है , तो दूसरों के लिए अपनेपन का भाव आएगा कैसे आप ही बताइये ||
जब खाना बनाने , खाना परोसने , घर के काम की जरुरत हो तो लड़कियों को कहा जाता है , और जब घर के बाहर वाला काम हो तो लड़कों की बारी आती है , ऐसा क्यों ????
एक बात बताइये , क्या विज्ञान या गणित के सूत्र आपको बिना पुस्तकों के समझ आ जाता है ? नहीं ना ?
तो सोचिये एक पूरी नयी ज़िंदगी को पालने के लिए क्या सीखने की जरुरत नहीं है ? क्या माँ बाप बनना बस बच्चे के जन्म से ही पूरा हो जाएगा ? , बिना तैयारी के तो जानवर के बच्चे पलते हैं , फिर इंसान और जानवर में फर्क क्या हुआ ?
2. हमारे तथाकथित राजनेता और उद्योगपति : -
आज के युग में , इंसानों को क्या सीखाया जा रहा है ? ये बड़े - बड़े राजनेता लोग क्या कह रहे ? वो लोग आपकी ज़िन्दगी को आसान बनाने की कोशिश करते दिख रहे हैं , आपको एक संसाधन संपन्न बनाने की कोशिश कर रहे , पर किस कीमत पर ? चुनाव आते ही आपको मुफ्त की चीज़ों का लालच दिया जाता है , किस कीमत पर ? कहीं न कहीं इस धरती का उपभोग ही तो हो रहा ना ?
राजनेता लोग जो जीडीपी की बात करते हैं वो है क्या ? बस आपको उपभोक्ता बनाये जा रहे , जितना ज्यादा चीज़ों का उपभोग होगा , उतना ही जीडीपी बढ़ेगा , तो लोगों को बस भोगना सीखा रहे , और इस पर आग में घी डालने का काम करते हैं उद्योगपति , राजनेता और उद्योगपति की जोड़ी एक साथ काम करती है |
वो तो चाहते ही हैं आप उनकी चीज़ें खरीदें , जितने भी विज्ञापन आते हैं वस्तुओं के , आपने देखा है उसमे लड़कियों और महिलाओं को कैसा दिखाया जाता है ? , कुल मिलाकर उद्योगपति लोग एक स्त्री को भोग की दृष्टि से दिखा रहे |
क्या इसे शुरुआत में नहीं रोकना चाहिए ?
पर हम यहाँ एक सभ्य नागरिक बन जायेंगे , कहेंगे हम तो बस सामान खरीद रहे हैं, पर उस सामान के पीछे जो हिंसा है वो नहीं देखेंगे |
3. सेलिब्रिटी :-
किसी इंसान को सेलेब्रिटी बनने के लिए क्या चाहिए ? आपने देखा है , यूट्यूब पर , इंस्टाग्राम पर कैसे कैसे लुच्चे लोग भी सेलिब्रिटी बनकर घूम रहे हैं , उनको बनाता कौन है ? हम आम इंसान ही , तो कुल मिलाकर ऐसे नीच लोगों को सिंहासन तो हम ही दे रहे हैं , फिर यही बेवकूफ लोग आपको ज़िन्दगी जीने का तरीका सीखा रहे |
आपने एक लाइन जरूर सुनी होगी :- " वो करो जिसमे आपका मन लगे , आपको ख़ुशी मिले | " है न ?
आप बताइये क्या ये सही है ? नहीं , बिलकुल गलत है , पूरी तरह गलत है |
अगर किसी इंसान को किसी को मारने में खुशी मिल रही , तो क्या वो जुर्म करना शुरू कर दे ?
कोई राह चलते लड़कियों पर गलत नज़र डाल रहा , उसे ख़ुशी मिल रही , क्या वो सही कर रहा ?
और ऐसे ही सेलेब्रिटी लोग जब उद्योगपतियों का प्रोडक्ट बेचने के लिए , विज्ञापन भी करते हैं तो भोगवाद को बढ़ावा देने के लिए ही करते हैं |
क्या इसे शुरुआत में ही ना नहीं कहना चाहिए ? हम कहेंगे , हम तो बस वीडियो देख रहे हैं , पर उनके वीडियोस को देखकर हम उनका सपोर्ट ही तो कर रहे हैं |
4. स्कूल और कॉलेज : -
आप कहेंगे , इसको तो छोड़ देते , इन्होने क्या बिगाड़ा है , जी हाँ ये भी उनमे शामिल है |
जब एक बच्चा स्कूल जाता है या वही बड़ा होकर कॉलेज में जाता है , तो क्या सीखाया जाता है ? पढाई अच्छे से करो , पढाई अच्छा किये तो अच्छी जॉब लगेगी , फिर अच्छी जॉब से बहुत पैसे मिलेंगे , उस पैसे से ज़िन्दगी संवर जाएगी , तो ये सब क्या हैं ? कुल मिलाकर आपको भोगवाद की तरफ ही तो ले जाया जा रहा है |
पढाई का मकसद आपके ज्ञान से है ही नहीं , आपने बहुत कम देखा होगा , की एक अच्छी नौकरी के बाद लोग मेहनत कर रहे हो , ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हो , अपने पैशन को फॉलो कर रहे हो , मेहनत कर भी रहे तो ज्यादा पैसों को ध्यान में रखकर कर रहे |
बस पैसे आना चालु और ऐश की ज़िन्दगी बिताना चालु , क्या ये भोगवाद नहीं है ?
आप देखते नहीं की कैसे एक सरकारी नौकरी लगने के बाद , रिश्तों की लाइन लग जाती है , नौकरी और शादी में ज्यादा वक़्त नहीं लगता , तो ये नौकरी का मुख्य उद्देश्य क्या था ? देश की तरक्की में हाथ बँटाना ? बिलकुल नहीं , उद्देश्य था भोगवाद का , नौकरी रहे तो शादी हो जाएगी , लोगों के बीच अच्छी इज़्ज़त मिलेगी , तो क्या ये लालच , डर और गुस्सा को बढ़ावा नहीं दे रहा ?
5. हमारे धर्म और रीति रिवाज :-
ये पढ़ने में कई लोगों को बुरा लग सकता है , और वही तो मैं चाहता हूँ की चोट लगे आपको , तभी तो सुधार की गुँजाइश होगी , आम इंसान ने धर्म और अपने संस्कृति को पूरी तरह बस भोगवाद की तरफ मोड़ दिया है , आप कोई भी त्योहार देख लीजिए , चाहे दीवाली , होली , जन्माष्टमी , तीज , हर बड़े से लेकर छोटे त्योहार , सबमें सिर्फ चीज़ों का उपभोग , सजना संवरना , रसीले व्यंजन बनाना और खाना , पैसों की नुमाइश करना और बहुत सारी हिंसा |
बस यही होती है , क्या धर्म इसीलिए है ?
आपकी वृत्ति जैसे गुस्सा , नफरत , , लालच , डर , ये सब क्या खत्म हो रही है ? नहीं हो रही मतलब वो रीति रिवाज किसी काम का नहीं , अभी जन्माष्टमी मनाई गयी , आपने कृष्ण को बड़ा ही नहीं होने दिया , कृष्ण को समझना है तो गीता पढ़िए , पर यहाँ तो उनको माखन और दही चटाये जा रहे , आपके माखन खिलाने से आपकी कौन सी वृत्ति खत्म होगी बताइये ?
उल्टा उस गाय के बच्चे का दूध छीन लिए , तो क्या ऐसे रुकेगी सब हिंसा ? बिलकुल नहीं |
6 . दूसरे जीवों के प्रति हमारी सोच :-
दोस्तों , इसे आप कितना भी नज़रअंदाज़ कर लें , पर यही सच है | जरा एक बार खुद ही सोचकर देखिये , हम बेजुबान जानवरों को जिन्होंने हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा , उनका हम शोषण कर रहे , ज़िंदा जानवरों को मारकर उनका माँस का स्वाद ले रहे , फिर कैसे आप उम्मीद करोगे की वो इंसान , किसी दूसरे इंसान के बारे में सही सोचेगा ?
अगर आपके परिवार में कोई मांसाहारी है , तो सबसे पहले आपको उसी इंसान से खतरा है , फिर चाहे वो आपके खुद के माँ बाप ही क्यों ना हो |
दोस्तों , हम जो खाते हैं , देखते हैं , जिनके साथ रह रहे , वही चीज़ों से तो हमारी ज़िन्दगी बनती है , अगर कहीं गलत हो रहा मतलब जरूर उसी ज़िन्दगी में गड़बड़ है , और कहीं नहीं |
हमे तो अपनों ने लूटा , औरों में कहाँ दम था ???
अंतिम में बस यही कहूंगा :- "" Respect The Women "" जय हिन्द ||
THANK YOU ALL TO READ MY BLOG.
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