आज हम बात करने वाले हैं समाज के बारे में , इंसान के लिए समाज या समाज के लिए इंसान ?? , आपने अक्सर समाचार , टीवी में देखा होगा की कैसे समाज के लोगों द्वारा , दूसरे जो उसी समाज का हिस्सा है उनपर अपने नियमों को थोपा जाता है , एक तरफ आक्रामक तो दूसरे तरफ मूक रवैया अपनाती है |
कैसे समाज में आ गए हम ??
नमस्कार सभी को ,
कैसे हैं आप सब ? उम्मीद हैं ज़िन्दगी में अच्छे कार्य कर रहे होंगे , नहीं भी कर रहे हो तो अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है , आप कर सकते हैं |
दोस्तों , ये टॉपिक है उस समुदाय के बारे में जो इंसान को जन्म से ही मिलता है , और मरते दम तक उसके साथ रहता है , जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ " समाज " के बारे में |
आप कहेंगे आपको पता हैं , पर मैं कहूंगा की मैं कुछ और बात करने वाला हूँ |
समाज की अवधारणा :-
दोस्तों , समाज की अवधारणा आयी कैसे ? जाहिर सी बात हैं की मानव को अपने जरूरतें पूरी करने के लिए बाकि लोगों की जरुरत पड़ी , उसके बाद सभी लोग एक समूह में रहने लगे , और एक दूसरे की मदद करते हुए पीढ़ी दर पीढ़ी निकलती गयी |
नियम और कायदे :-
अब जाहिर सी बात हैं दोस्तों की हम जहाँ रहते हैं उसके कुछ नियम कायदे तो होने ही चाहिए , है न ?
तभी तो हम इंसान जानवरों से अलग होंगे , नहीं तो उनमें और हममें फर्क क्या हुआ ?
तो समाज में लोगों के लिए नियम बने , उसी के अनुरूप सभी अपना अपना काम करते रहे |
चलिए यहाँ तक भी सही है |
पुरातन समाज : -
एक समय था जब इंसान ऊपर होते थे , और समाज को एक आपसी सद्भाव का स्रोत माना जाता था , लोग एक दूसरे के साथ बहुत सटीक और सही व्यवहार करते थे , हमने राम राज का नाम तो सुना ही है , जहाँ सभी ख़ुशी से रहते , आपसी भाईचारे से रहते ,राम के चरित्र को हम जानते ही हैं , उनके भाइयों का आपसी प्रेम , सेवक और मालिक के बीच का प्रेम इत्यादि , यही नहीं आज से 200 साल पहले के समाज को ही देख लीजिये , सभी व्यक्तियों की भूमिका अलग अलग और विशेष थी |
अगर किसी घर में कुछ दिकक्त हो तो पूरा समाज आता था उसे सही करने के लिए , सभी को अपनी अपनी जिम्मेदारी पता थी , आज़ादी के क्रन्तिकारी लोगों को तो आप जानते ही हैं , उनको भी पता था की आज़ाद भारत को वे देख भी सकते हैं या नहीं भी , पर आज़ादी तो दिला के ही रहेंगे |
वर्तमान समाज :-
फिर आया , 19 वी - 20 वीं शताब्दी , मशीनों का युग | जहाँ इंसान की कीमत उसके व्यव्हार या आचरण से नहीं बल्कि उसकी प्रसिद्धि से मानी जाने लगी , लोग एक दूसरे के लिए बस ग्राहक और दुकानदार वाला व्यव्हार करने लगे , जो काम का है उसे अपनाओ , जो नहीं उसे बाहर फेंको |
कुल मिलाकर समाज का एक नया रूप सामने आया , जहाँ लोग स्वार्थ के आवेग में बहते चले गए , घर में बुजुर्गों की कोई सुनता नहीं , बच्चो के नए ज्ञानी दोस्त " मोबाइल " बन गए , समाज बिलकुल टूट सा गया |
अब हमारा समाज सीधे सीधे " अपना काम बनता , भाड़ में जाये जनता " के सिद्धांत पर कार्य करने लग गया है , यहाँ अब समाज , इंसानों से ऊपर हो चुके हैं , कुछ चंद लोगों के हाथों में समाज की बागडोर हैं , ये वही लोग हैं जो रूढ़िवादीता को ही अपना धर्म समझते हैं , अब नियमो को सीधे - सीधे लोगों पर थोपा ही जाता हैं |
अगर मैं कहूं की " समाज जोड़ने पर नहीं , तोड़ने पर भरोसा करता है " तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी , और हमे सोचने पर मजबूर कर देती है की इंसान के लिए समाज या समाज के लिए इंसान ??
उदाहरण : -
1 - आपको कहीं जाने की जरुरत नहीं , अपने बाजु के घर में देख लीजिये , एक बूढ़े माँ बाप को उसके बच्चे घर से निकाल देंगे , उन्हें खाने को नहीं देंगे , उन्हें उनके हाल पर छोड़ देंगे , तो क्या समाज के लोग वहां आते है ? बिलकुल नहीं , बल्कि 10 जगह उस बात को फैलाएंगे , की फलाने इंसान ने अपने माँ बाप को घर से निकाल दिया |
2 - अब उसी घर में कोई लड़का किसी लड़की से शादी कर ले , और वो लड़की किसी दूसरे जाति की हो , बस अब तो सीधे - सीधे युद्ध होगा , गृह युद्ध , पूरा समाज आपके सिर पर नाचने लगेगा , और उस दंपत्ति को अपने परिवार से अलग करा कर ही चैन लेगा , अगर यही लड़की वाले पक्ष का समाज हो तो लड़की को उसके घर आने की इज़ाज़त ही नहीं देगा , ऐसा क्यों ?
घर टूटने पर समाज बस देखता रहा , और घर जुड़ने पर आ गया अपना ताकत दिखाने , अपने नियमों की दुहाई देने , उसे समाज से अलग ही कर दिया जाता है , क्या हमे वाकई ऐसे समाज की जरुरत है ?
जब बड़े - बड़े अभिनेता , क्रिकेटर दूसरी जाति में शादी करे तो यही लोग उनके पीछे चलते दिखाई देंगे , पर जब खुद की बारी आती है ? तब नियम याद आते हैं |
3 - चलिए दूसरी जाति का भूल जाइये , अपनी ही जाति में विवाह की हुई लड़की को उसका पति मार रहा है , उसके घरवाले उसे परेशान कर रहे , क्या ये समाज आएगा ? क्या तब भी कहेगा की लड़की तो चलो अपने जात वाले से ही पिट रही है , अच्छा है ??
4 - हम अक्सर सोचते हैं , की ऐसा करेंगे तो 4 लोग क्या कहेंगे ?? पूरी ज़िन्दगी बस इसी डर में ज़िन्दगी कटती जाती हैं , अभी आपने कुछ घटनाओं के बारे में सुना ही होगा , जिसमे किसी लड़की या लड़के को कोई नुक्सान पहुंचा रहा है तो समाज के लोग वहां बस देखेंगे , वीडियो बनाएंगे , और सोशल मीडिया पर अपलोड कर संवेदना जताएंगे , कोई नहीं आएगा बचाने , और आप इस समाज के लिए ज़िन्दगी भर डरते रहे |
तो ऐसा है अभी का समाज , जहां पितृसत्तामक सोच बहुत ज्यादा हावी होती जा रही , एक गांव में 4 बुजुर्ग लोग इकट्ठे हो जाएंगे और दूसरे लोगों को चरित्र प्रमाण पत्र देते फिरेंगे , बस एक ही चीज़ आती है वो है " दबाना " , समस्या का समाधान नहीं , उसे दबा दो , बस हो गया समाधान , है न ?
तो करे क्या ? -
अब कई लोगों का ये प्रश्न भी होगा की करे क्या ? , तो इसका सीधा सीधा उत्तर है " बगावत " |
नहीं - नहीं इसे आप वो फिल्मों वाली बगावत मत समझिये , मैं उस बगावत की बात कर रहा जहाँ लोग खुद को समाज से नीचे नहीं देखे , और अपनी सोच को विकसित करे |
1 - समाज कहता है , लड़की 20 - 21 साल की हुई तो उसकी शादी करके घर से भेजो , वो पराई धन होती है ?
क्यों भाई ? 20 साल में क्या खास अद्भुत ज्ञान की प्राप्ति उसे हो जाएगी ? सालों साल लगते हैं ज़िन्दगी को समझने में , तुम 20 - 25 साल में क्या महारत हासिल कर लोगे ? दूसरी बात पराया धन क्या होता है ? लड़की है या कोई संपत्ति ? तुमने सीधे सीधे उसकी तुलना धन से कर ली |
वो लड़की न खुद को संभालना जानती है , न खुद को सुरक्षित करना जानती है , नयी ज़िन्दगी कैसे शुरू कर सकती है ?
पहले एक लड़की को पढ़ाइये , शिक्षित कीजिये , उसे एक काबिल इंसान बनाइये , खुद के दम पर कुछ कर सके , फिर बाकि निर्णय वो खुद ले लेगी |
और ये बात सिर्फ लड़की नहीं , बल्कि लड़कों पर भी लागू होती है |
2 - समाज कहता है , हम जैसे धार्मिक कर्मकांड करते हैं , तुम भी करो , नहीं तो तुम्हे बिलकुल अलग नज़र से देखा जाएगा , आम भाषा में जिसे नास्तिक कहते हैं |
क्या आपने कभी सोचा है ? भारत में सबसे ज्यादा मंदिर शिवलिंग के ही क्यों है ?
क्योंकि भारत की आध्यात्मिक सोच वेदांत की रही है , उसने परम सत्ता को हमसे अलग नहीं बल्कि हर जीव - निर्जीव में देखा , निराकार परम तत्त्व ही भारत में पूजे जाते थे , आज आप निराकार की बात कर दो , हमारा समाज उसे ही नास्तिक कहता है , आप बस भगवा कपडे पहन लो , बस हो गए धार्मिक | कितनी छोटी सोच की निशानी है ये | लोगों को धर्म के नाम पर सिर्फ चमत्कार ही देखना है |
समाज के कर्मकांड को छोड़िये , और ज्ञान कांड की तरफ रुख करिये , आप भगवद्गीता से शुरुआत कर सकते हैं , उसे अपने जीवन में उतार सकते हैं , बाकि चीज़ें अपने आप छूट जाएँगी |
आप कबीर दास को तो जानते ही होंगे , वो शुद्ध ज्ञान की ही बात करते थे |
तो अगर कोई पूछे की इंसान के लिए समाज या समाज के लिए इंसान ?? तो याद रखिये , " समाज हमारे लिए है , हम समाज के लिए नहीं हैं | "
THANK YOU TO READ MY BLOG .....
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बहुत ही अच्छी सोच है
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