क्या इन परम्पराओं की जरुरत है ???
Hello Friends ,
एक बार फिर आप सभी का स्वागत है मेरे नए ब्लॉग में , आशा करता हूँ मेरे लिखे गए ब्लॉग से आपको वो चीज़ जरूर मिल रही होगी , जो मैं आपको देना चाहता हूँ , इन ब्लॉग को पढ़ने में आपको मुश्किल से 5 मिनट का समय लगेगा , और आप अभी इसे पढ़ रहे हैं मतलब मैं ये उम्मीद आपसे जरूर कर सकता हूँ की आप मेरे नए ब्लॉग के साथ साथ पुराने ब्लॉग को भी पढ़े होंगे , अगर नहीं पढ़े होंगे तो इस ब्लॉग के सबसे नीचे स्क्रॉल करने पर वो पुराने ब्लॉग आपको मिल जायेंगे , तो चलिए शुरू करते हैं , आज का ब्लॉग ||
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दोस्तों अभी कुछ समय पहले मैं अपने एक जूनियर दोस्त से मिला जो कॉलेज में मेरे से कुछ कक्षाएं पीछे था , हम बातचीत कर रहे थे , तभी एक टॉपिक उभरकर आया , जिससे हम दोनों अलग सोच रखते थे , फिर मुझे लगा ये बात आप तक जरूर पहुंचानी चाहिए , ताकि आप भी इस बारे में सोच सके |
तो बात ये थी की परम्पराओं के नाम पर जो भी कर्मकांड किये जाते हैं , भले उसमे पेड़ों , जानवरों , प्रकृति के बारे में कुछ सकारात्मक पहलु हो , वो आज के समय में कितना जरुरी है ?
जैसे
1 - कार्तिक मास की आंवला नवमी को आंवला पेड़ की पूजा करना |
2 - पितृ पक्ष में श्राद्ध के नाम पर नदियों में कर्मकांड करना |
3 - दिवाली पर बेतहाशा पटाखों का इस्तेमाल , ताकि लोग दिवाली की महत्ता समझ सके , हिंदुत्व को बढ़ावा देने का विचार इत्यादि |
4 - गोवर्धन पूजा में गायों के साथ करने वाले कर्मकांड |
5 - वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा करना |
वैसे लिस्ट बहुत लम्बी है , क्योंकि कहते हैं न भारत में दिन कम और त्यौहार ज्यादा है ||
तो मेरे जूनियर दोस्त का ये कहना था की ये सब सही है , जरुरी भी है ताकि लोग इसी बहाने पेड़ों की रक्षा करे , नदियों को माता मान कर उनकी देखभाल करे , जानवरों के साथ सही ढंग से व्यवहार करे |
हाँ यहाँ तक तो मैं भी उससे संतुष्ट था , पर बात यहाँ अटक गयी की आगे भी ये चीज़ें होनी चाहिए , तभी हम प्रकृति को बचा पाएंगे |
मैं यहाँ उसका साथ नहीं दे पाया |
चलिए मैं मानता हूँ की ये सभी चीज़ें पुरातन समय में बहुत काम की चीज़ थी , हमारे पुराने रीतिरिवाज सही थे , क्यों ? क्योंकि पुराने समय में शिक्षा का स्तर उस हद तक नहीं फैला था की समाज के सभी लोग उसका फायदा उठा सके , तो जो बुद्धिमान वर्ग था उसने कुछ नियम , रीतिरिवाजों को फ़ैलाने का काम किया ताकि इसी बहाने लोग प्रकृति से जुड़ सके , इसीलिए हमारे भारत के लगभग सभी रीतिरिवाजों में प्रकृति और उससे जुडी चीज़ों का ही मिला जुला संगम मिलता है |
पेड़ों में बरगद , पीपल , तुलसी इनकी पूजा का क्या अर्थ है ?
ये हमे आधुनिक युग में समझ आता है , ये पेड़ कोई सामान्य पेड़ नहीं हैं , अन्य पेड़ों के मुकाबले इनकी ऑक्सीजन देने की क्षमता ज्यादा है , स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो भी इनके कई फायदे हैं , क्या ये केवल संयोग हैं ?
बिलकुल नहीं |
सोच समझकर ही पेड़ों को भारतीय रीतिरिवाजों में स्थान दिया गया है |
पर अब जैसे ही आधुनिक युग में चमत्कार जैसे शब्द अब असहज लगने लगे हैं , तब अन्धविश्वास ने अपना सिर ऊँचा करना चालू कर दिया है |
अब लोग इन पेड़ों के पास जाकर अपने परिवार की मंगल कामना , खासकर महिलाये जो अपने बच्चों और पति की लम्बी उम्र के लिए इन पेड़ों पर धागे लपेट रही है , क्या ये सही है ? एक नया बरगद या पीपल पेड़ लगाने के लिए इन लोगों का हाथ आगे नहीं बढ़ता पर कोई त्यौहार आ जाने से चले पेड़ों से मन्नत मांगने |
अब होता क्या है , इन छोटे अंधविश्वासों से तो कुछ बिगड़ता नहीं पर इससे बड़े अंधविश्वासों के लिए और हिम्मत आ जाती है , और यही लोग फिर कट्टरता की ओर बढ़ते जाते हैं , जानवरों की बलि देकर देवियों को प्रसन्न करने में लगे हैं , अब तो बात जानवरों तक ही नहीं बल्कि इंसानों की बलि तक भी पहुंच गए हैं |
एक तरफ तो जंगल , पेड़ों को भगवान की संज्ञा देकर पूजते हैं , देवताओं के वाहन अक्सर जानवर ही होते हैं जैसे शंकर का वाहन बैल , दुर्गा का वहां शेर , गणेश का वाहन चूहा |
दूसरी तरफ इन्ही जानवरों को मारकर इनकी तस्करी की जा रही , लोग इनके नाखूनों , सींगों , दांत , और भी शरीर के अंगों का लॉकेट बनाकर शरीर में धारण कर रहे , ऐसे लोग ही खुद को धार्मिक कहकर छाती चौड़ी करके घूम रहे , मुर्ख लोग !!!
वहीं एक तार्किक इंसान को लीजिये , उसे इन कर्मकांडो में कोई दिलचस्पी नहीं पर वो जानता है की इन पेड़ों का क्या महत्व है , तो वो बिलकुल इन्हे लगाएगा , पोषित करेगा , जानवरों के प्रति उसका भाव अलग रहेगा , तो क्या अब इन रीतिरिवाजों को जगह मिलनी चाहिए ?
ये तो रही पेड़ों और जानवरों की बात , आप कोई नदी को ले लीजिये , भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा नदी है |
और दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में भी यही नदी का नाम आता है , यमुना नदी का हाल तो आप जानते होंगे |
और ये हालत किसने किया ?
यहीं कर्मकांडी लोगों ने , जो रीतिरिवाजों को ही धर्म समझकर आंख बंद करके निभाए चले जा रहे , आज गंगा नदी का पानी , पीने लायक तो छोड़िये , नहाने लायक तक नहीं है |
उत्तरप्रदेश , जहाँ श्री राम की जन्म भूमि कही जाती है , उसी के शहर कानपुर में भारत का सबसे बड़ा चमड़ा उद्योग है , और इस उद्योग की सारी गन्दगी गंगा नदी में बहा दी जाती है |
चमड़ा उद्योग में चमड़ा कहाँ से आया ? जानवरों से ही न ? तो फिर श्री राम की जन्मभूमि में जानवरों की हत्या कौन कर रहा ?
वही लोग जो श्री राम को पूजते हैं , यही कर्मकांडी लोग हैं |
अभी भारत में दीवाली धूमधाम से मनाई गयी , पटाखों से प्रदुषण होता है , ये एक दूसरी कक्षा का बच्चा भी जान लेता है , पर राजधानी दिल्ली का आपने सुना ही होगा , दीवाली के दूसरे दिन वहां की हवा जहरीली हो गयी थी , सबसे जयादा AQI ( AIR QUALITY INDEX ) दीवाली के अगले दिन था , क्या इसे मूर्खता नहीं कहा जाएगा ?
दीवाली धूमधाम से मनानी है , इसका मतलब क्या खुद का और दूसरों का जान ही ले लेंगे ??
देखिये मेरी कोई ज्यादती दुश्मनी नहीं है इन कर्मकांड करने वाले लोगों से , मुझे दिक्कत है तो सिर्फ इनकी सोच और व्यवहार से , अब 21वी सदी का युग है , हम सभी वाकिफ है की किन चीज़ों से क्या प्रदुषण होता है , किस चीज़ से क्या फायदा होता है , तो मैं यही कहूंगा की इसे धर्म नहीं बल्कि विज्ञान के नजरिये से देखे , धर्म के लिए और बहुत सारी चीज़ें हैं , हम धर्म का असली मतलब जो इंसान के मन और विचार से सम्बंधित हैं , उसे छोड़कर कर्मकांड और रीतिरिवाज का नाम लेकर प्रकृति को ही ख़त्म कर रहे हैं |
अगर किसी को कुछ सिखाना है तो ज्ञान से ही हो पाएगा |
रीतिरिवाजों का सहारा लेकर हम सिर्फ अन्धविश्वास को ही बढ़ावा देंगे , और खुद का तथा दूसरों की ज़िंदगी बर्बाद करेंगे , और कुछ नहीं |
तो दोस्तों ये था मेरा आज का ब्लॉग , अगर आपको मेरे विचार सही लगे तो कमेंट में जरूर बताइये , और अगर कहीं दिक्कत लगे तो भी कमेंट करके मुझे बता सकते हैं , आपके सुझाव आमंत्रित हैं |
THANK YOU ALL TO READ MY BLOG..