क्या बस औरतों का ही फ़र्ज़ बनता है ????
Hello Friends ,
मैं हूँ आर्यन और लेकर आया हूँ एक नया ब्लॉग , नए टॉपिक के साथ , वैसे आज का ब्लॉग खासकर लड़कियों और महिलाओं के लिए बनाया गया हैं , तो चलिए शुरू करते हैं |
तो फ्रेंड्स पहले बात कर लेते हैं , प्रकृति की जहाँ स्त्री और पुरुष इन दोनों की आवश्यकता होती है , किसी सभ्यता को आगे बढ़ाने के लिए , शारीरिक तौर पर देखा जाये तो स्त्री और पुरुष में केवल कुछ ही भेद हैं क्योंकि वो भेद आवश्यक भी है , ताकि नए जीवन ( नये बच्चे ) का पालन पोषण हो सके , तो प्राकृतिक तौर पर स्त्री और पुरुष में कोई जमीन आसमान का फर्क होता नहीं हैं |
तो अब बात करते हैं वर्तमान की जहाँ हम एक लोकतांत्रिक समाज में रह रहे हैं , लगभग आधी आबादी महिलाओं की है , जहाँ स्त्री और पुरुष को समान अधिकार दिलाने की बाते की जाती है , कुछ हद तक ये कार्य हो भी रहा है जमीनी स्तर पर !
पर अगर देखा जाये तो आज भी जहाँ हम 21 वी सदी में रह रहे हैं , लोगों की मानसिकता बहुत ही कम बदलती नज़र आती है , अगर देखा जाये तो ये सामाजिक अनुकूलता हो गयी है की स्त्री का स्थान उस जगह तक पहुँच नहीं पाया जहाँ उसे आज होना चाहिए |
जहाँ तक मैं इसका कारण समझता हूँ , उसे मैं आपके सामने रख रहा हूँ , अगर आप वाकई मुझसे सहमत होंगे तो जरूर इसे आगे बढ़ाये |
देखा जाये तो ये बातें किसी बच्चे के जन्म से ही निर्धारित हो जाये रहती है , लड़की का जन्म हुआ नहीं की अगले ही पल से उसके माँ बाप और परिवार उसके भविष्य जैसे उसकी पढाई , शादी , जीवन शैली इन सबको निर्धारित करके बैठ जाते हैं , बाप उसके जन्म से ही उसकी शादी के लिए रुपये जुटाना शुरू कर देता है , माँ उसे घर और रसोई के काम सिखाने शुरू कर देती हैं ,घरवाले उसे एक नाज़ुक कांच के टुकड़े की तरह संभाल कर रखना शुरू कर देते हैं , समाज उसे उसके व्यव्हार , चाल - ढाल , व्यक्तित्व के बारे में टिप्पणी करना शुरू कर देता है , और हम और हमारी सरकार " महिला सशक्तिकरण " के नारे लगाते है |
बस हो गया ???
क्या इसी से ही एक महिला के प्रति हमारी सभी जिम्मेदारियां पूरी हो जाती है ?
वास्तव में देखा जाये तो ये काम बहुत बड़े चीज़ जैसी है नहीं , हम अपनी रोजमर्रा की ज़िन्दगी से ही शुरुआत कर सकते हैं "महिला सशक्तिकरण " की | कैसे ??
चलिए देखते हैं की ऐसे कौन - कौन से वर्ग हैं जिन्होंने कार्य किए , स्त्री वर्ग को आगे बढ़ने से रोकने के लिए |
1 . खुद का घर -
आप बोलेंगे ये कैसे हो सकता है ? खुद का घर कैसे रोकेगा ? मैं कहता हूँ क्यों नहीं ? जब एक लड़की अपना बचपन बिता रही होती है तो सबसे अच्छी चीज़ जो उसे पसंद होती है वो है खिलौने , अब आप एक बार नज़र दौड़ाइए , कैसा होता है एक लड़के का खिलौना और कैसा होता है एक लड़की का खिलौना ? लड़के को दिया जाता है कार , बाइक , बंदूकें और लड़की के हिस्से में आती है , किचन सामान , बार्बी डॉल |
एक 4 - 5 साल की लड़की खेल - खेल में अपने घरवालों को उस खिलोने की रसोई से खाना बनाके खिला रही , और घरवाले भी इतनी मूर्खता करते हैं की नकली खाना खाके भी कह रहे " हमारी बिटिया ने क्या बढ़िया खाना बनाया है " , क्या उस लड़की के दिमाग में आप नहीं भर रहे की " बेटा , तुम्हारा काम है घरवालों के लिए खाना बनाना ? "
2 . स्कूल / कॉलेज -
यहाँ तो मतलब हद ही हो जाती है , पूरा सिस्टम बन जाता है की लड़की को आगे क्या बनना है उसे बता दिया जाए , उसकी समझदारी , उसकी ख़ुशी घरवालों की बात मानने में ही है |
चलिए अब तो थोड़ा माहौल बदल भी रहा है , पर केवल 10 या 20 प्रतिशत , बाकि 80 का क्या ??
स्कूलों / कॉलेजों में जैसे संगीत हुआ , नृत्य हुआ , पेंटिंग प्रतियोगिता हुआ , यहाँ किन लोगों को ज्यादा भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाता है ?
वहीं क्रिकेट , फुटबॉल , रेसिंग गेम्स इनमे किन्हे ज्यादा प्रोत्साहित किया जाता है ?
3 . खुद स्त्रियां -
भई ये तो और गड़बड़ हो गयी , हम बात कर रहे हैं " महिला सशक्तिकरण " की , पर कौन इन्हे आगे बढ़ने से रोक रही ? खुद महिलाएं | कैसे ?
व्रत - उपवास :-
सहूलियत :-
आजकल महिलाये अब जानबूझकर भी आगे नहीं बढ़ना चाहती , क्योंकि उन्हें अब शादी के बाद की सहूलियत वाली ज़िन्दगी में मज़ा आने लग गया है , पति कमा कर पैसा घर ला रहा , वो उसके बदले उन्हें खुश करने में लगी हुई है , ज़िन्दगी कट रही है , और बच्चा हो गया तब तो और उनको कारण मिल गया , घर पर सहूलियत से रहने का , भले एक तरफ वो खुद को असहाय बता रही पर दूसरे तरफ कुछ कर भी तो नहीं रही उस स्थिति से निकलने के लिए , बल्कि ये महिलाएं अपनी बेटियों को भी वही काम करने को कह रही जिसकी बदौलत , वो अभी इस हाल में हैं |
तो करे क्या ???
1 . शिक्षा -
ये सबसे पहली और महत्वपूर्ण उपाय है , और शिक्षा का मतलब केवल किताबी ज्ञान नहीं बल्कि धार्मिक , आर्थिक , राजनैतिक ज्ञान भी जरुरी है , कहने को तो महिलाएं धार्मिक कही जाती है पर धर्म के नाम पर बस पूजा पाठ , रीति रिवाज ही जानते हैं , इन्हे कोई भी आसानी से धर्म के नाम पर डराकर बेवकूफ बना सकते हैं | कोई ढोंगी बाबा गया , बोला की ये पूजा करो नहीं तो तुम्हारे पति , बच्चे को नुक्सान पहुंचेगा , वो फ़ौरन मान जाती है | ये तावीज पहनाओ , ये कपडा बांधो अपने घर के दीवार पर , वो बिना कुछ सोचे समझे मान लेती है |
2 . पुरुषों का फ़र्ज़ -
अच्छा अगर आप लड़के हैं तो मैं ये पूछूं आपने पिछली बार कब किचन में कदम रखा था ? क्या जवाब होगा ?
आपकी कोई बहन होगी , वही किचन में मदद करती है , क्या आपने कभी बोला की माँ आज का खाना मैं बनाऊंगा ??
मदर्स डे पर उनकी फोटो अपने सोशल मीडिया में डालने से कुछ नहीं होगा , हफ्ते में कम से कम एक दिन उनको किचन से छुट्टी दीजिये |
साथ ही साथ उनके बाकि कामों में भी मदद कीजिये , जिससे उन्हें समय मिल सके ताकि कुछ सोच सके , हमने उनको किचन और घर में ऐसे कैद कर दिया है की उनकी पूरी ज़िन्दगी इसी में गुजर जाती है |
3 . सशक्त बनना :-
लड़कियों को खुद से सशक्त बनने दीजिये , हर बार छोटी छोटी चीज़ों में उनकी मदद करना सही नहीं , मेरे कई दोस्त हैं ( लडकियां ) , जो कोई वेबसाइट में कोई फॉर्म भरना हो तो मुझे कहती हैं , मैं सीधे उनको मना कर देता हूँ , और एक वीडियो लिंक भेज दूंगा जिसमे वो फॉर्म भरने की विधि बताई गयी हो |
अरे जब तुम एक ऑनलाइन फॉर्म तक ना भर सको तो क्या ही कहूं मैं ??
अगर आपके घर कोई लड़की है , बहन है , बेटी है , तो हर चीज़ में उनको सपोर्ट करने मत लग जाइये , बस उन्हें सही रास्ता बता दीजिये , उनको आगे का सफर तय करने दीजिये |||||
आज के समय में लड़कियों का सिर्फ पापा की परी बनकर रहना बिलकुल भी सही नहीं है , बल्कि उन्हें भी शारीरिक , मानसिक , आर्थिक रूप से मजबूत होना ही पड़ेगा , और ये सब कोई एक दिन में चमत्कार जैसा नहीं होने वाला , हम सबको मिलकर ये जिम्मा उठाना होगा , तभी साकार होगा ये लक्ष्य " महिला सशक्तिकरण " |
SO FRIENDS THANKS TO READ MY BLOG.. ....???
KINDLY COMMENT IF ANY SUGGESTIONS OR ELSE...
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ठीक sir इस सम्बंध में अधिक से अधिक जानकारी लोगो तक पहुँचाना होगा।
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