समाज की जरुरत सामाजिकता है या फिर आध्यात्मिकता ???
Hello Friends ,
मैं हूँ आर्यन , लेकर आया हूँ एक नया ब्लॉग | दोस्तों आज के ब्लॉग का टॉपिक कुछ खास है , क्योंकि ये न सिर्फ हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी के लिए है बल्कि यूँ कहूं तो हमारी पूरी ज़िन्दगी इसी पर निर्भर है , और वो क्या है ?
" आध्यात्मिकता "
अक्सर ये देखा जाता है , जैसे ही ये शब्द किसी इंसान को बोला , पढ़ाया या सुनाया जाता है तो उसके मन में अलग अलग चित्र आने लग जाते है ,
उसे कोई जंगल में बैठा ऋषि याद आने लग जाएगा , या कोई 24 घंटे चलने वाला पूजा पाठ याद आ जाएगा , हमेशा गले में धारण करने वाला वो रुद्राक्ष माला या फिर सब चीज़ को छोड़कर अकेले जीवन बिताने वाला साधु याद आ जाएगा
और फिर कोई इंसान ये सब सोच के ही डर जाता है |
फिर इसकी तरफ जाना तो क्या , वो इसके बारे में सोचता ही नहीं है |
गलती आपकी भी नहीं है , क्योंकि इस शब्द को हमारे सामने ऐसे ही प्रदर्शित किया जाता है की हम इसे बहुत बड़ी चीज़ समझने लगते है , मैंने भी जब पहली बार ये शब्द सुना तो सोच में ही पड़ गया की क्या ये सही रास्ता है ?
पर जब इन चीज़ों में और गहराई से उतरते गया तब आभास हुआ की नहीं , ये उतनी भी बड़ी चीज़ नहीं जिसे बना दिया जाता है , बल्कि ये तो हमारे ज़िन्दगी में ही घुल मिल जाता है , तो चलिए देखते हैं ये हमारी पहुँच के बाहर है या इसे हम अपने ज़िन्दगी में ला भी सकते है |
अगर मैं " आध्यात्मिकता " के लिए यहाँ दूसरा शब्द इस्तेमाल करूँ जो आप सब अपने दैनिक जीवन में रोज़ाना उपयोग करते हैं , तो क्या इसे समझने में आपकी सहायता नहीं करेगा ?
तो चलिए मैं दूसरा शब्द इस्तेमाल करता हूँ , और वो शब्द है " जागरूकता " |
जी बिल्कुल अपने सही पढ़ा , उसका नाम जागरूकता ही है , अब आप सब इसे अपने स्तर पर जानते ही है , की जागरूकता माने क्या ?
अगर मैं साधारण शब्दों में कहूं तो " जागरूकता " मतलब " अपने चारो ओर हो रही चीज़ों के प्रति जगे रहना " |
यही इसका अर्थ है |
अब जब मैं आध्यात्मिकता के लिए ये शब्द इस्तेमाल कर रहा हूँ तो इसी में एक नयी चीज़ जोड़ देता हूँ |
" आध्यात्मिकता " का मतलब है " स्वयं के प्रति जागरूक या स्वयं के प्रति जगे रहना " |
देखा आपने कितना साधारण सा अर्थ है |
अब आप बोलेंगे की इतना ही साधारण है तो दुनिया में हर कोई आध्यात्मिक क्यों नहीं है ?
वैसे प्रश्न में दम तो है |
पर मेरे पास इसका उत्तर भी है |
" कहने को तो इसका अर्थ साधारण है , पर इसको जब अपने जीवन में लागू करोगे तो ये आसाधारण बन जाएगा " |
और याद रखिये , कोई भी साधारण इंसान , असाधारण कार्य कभी नहीं कर सकता |
" Any Ordinary Human Can Not Do An Extraordinary Work ."
चलिए इसी बात को थोड़ा आगे बढ़ाते हैं |
फ्रेंड्स जब आप सुबह उठते हैं उसके साथ ही बाहरी दुनिया से आपका साक्षात्कार होना शुरू हो जाता है , आप अपने परिवार से मिलते है , अपने काम पर निकलते है , दूसरे लोगों से मिलते हैं , कहीं किसी दुकान पर जाकर लेन देन करते है , तो जब ये सब काम करते हैं तो आप खुद में क्या रहते हैं ? " जागरूक " |
आप इस बात पर जागरूक रहते हैं की किसी से बात करते वक्त सामने वाले को हमारे किसी बात का बुरा न लग जाए |
जब आप दूकान में रहते हैं तो इस बात पर जागरूक रहते हैं की कहीं आप दुकान वाले को ज्यादा पैसा तो नहीं दे डाले या आपको जो सामान मिला है वो नकली तो नहीं या वजन में कम तो नहीं |
जब आप सोशल मीडिया में किसी से चैट कर रहे तो इस बात पर जागरूक रहते हैं की आपके शब्द कहीं कुछ गलत तो नहीं हो रहे |
जब आप खाना खा रहे होते हैं तो इस बात पर जागरूक रहते हैं की कहीं कुछ गलत चीज़ें तो नहीं खा रहे |
जागरूक होते हैं ना ?
बस आध्यात्मिकता में वही जागरूकता आपको अपने स्वयं के प्रति लानी है |
जब आप बाजार में कोई सामान खरीदते हैं तो ये जरूर पूछते हैं ना की ये टिकेगा की नहीं ? कब तक चलेगा ?
बाद में इसका परफॉरमेंस ख़राब तो नहीं होगा ?
तो क्या आप रात में सोने जाते हैं तो स्वयं से ये सवाल करते हैं की आज मेरी दिनचर्या कैसी रही ? क्या मैंने कोई गलत चीज़ें तो नहीं कर डाली ? क्या मैं खुद के प्रति ईमानदार रहा ?
यही तो है " आध्यात्मिकता " |
बाहरी चीज़ों ने आप पर कोई प्रभाव डाला , आप दिन में कितनी बार अपना मूड बदल रहे हैं ?
दूसरे लोगों के हँसाने पर हंस दिए , गुस्सा दिलाने पर गुस्सा हो गए , कोई उल्टी बात बोल देने पर मुँह उतर गया , क्या ऐसे तो नहीं हो रहा आपके साथ ?
क्या आप अपने खुद के प्रति जागरूक हैं , इस बात का निर्णय दूसरे तो नहीं ले रहे की आप कब खुश होंगे ? कब दुखी ? कब मन उदास होगा या कुछ और ?
बस आप खुद के प्रति जागरूक हो जाइये , आप आध्यात्मिक हो गए |
अब बात आती है , ये सब की शुरुआत कैसे हो ?
बिलकुल अच्छा सवाल है , शुरुआत आप अभी से करिये और कैसे करनी है वो मैं आपको बताता हूँ |
1 . खुद से लगातार प्रश्न करना : -
आप खुद से लगातार ये प्रश्न करते रहिये की " क्यों " |
जब आप कोई काम कर रहे हो तो खुद से पूछिए की क्यों कर रहे ?
जब आप कहीं जा रहे हो तो खुद से प्रश्न करिये की क्यों जा रहे ?
जब आप किसी से बात कर रहे हो , चाहे मोबाइल से या प्रत्यक्ष रूप में तो पूछिए क्यों बात कर रहे , क्या बात कर रहे , क्या ये जरुरी है ? ?
और जब इस प्रश्न का जवाब मिले की क्यों कर रहे , अंतिम लक्ष्य क्या है , और उसका कोई दूसरा विकल्प ना हो तभी वो काम करे |
2 . सत्संगति :-
मानव सामाजिक प्राणी है , तो जाहिर सी बात है संगती तो करेगा पर इस बात के प्रति तो आप जागरूक रह ही सकते हैं , संगती किसकी करनी है ? आप किसी ऐसे इंसान की भी कर सकते तो चोर हो , डाकू हो , शराब पीता हो |
और आप उसकी संगती भी कर सकते हैं जिसका लक्ष्य बहुत ऊँचा हों , या जिससे हमे बहुत कुछ सीखने को मिले |
जरुरी नहीं की सिर्फ इंसान से ही संगती की जाये , आप जानवरों से भी संगती कर सकते अगर उनसे कुछ सीख रहे तो |
आप किताबों से भी संगती कर सकते , एक महान इंसान ने एक बात बोली थी जो शत प्रतिशत सत्य हैं |
प्यार करना ही है तो किताबों से करो |
बेवफाई होगी भी तो आपका दिमाग बहुत ऊँचे स्तर का हो जाया रहेगा |
जब आप खाली होते हो , तो जो काम करते हो वही आपकी हकीकत है |
अब आप देख लीजिये की आप अकेले में क्या करते हैं |
और मैं तो कहता हूँ आप दूसरों की बुरी संगती करने से अच्छा खुद से ही संगती करे , खुद के साथ समय बिताये |
3 . सांसारिक लोगों से बचे :-
आप किसी इंसान से मिले फिर वो कह रहा , भाई सब्जी का दाम बहुत बढ़ गया है , गर्मी या सर्दी बहुत ज्यादा लग रही है , ये राजनितिक पार्टी अच्छी नहीं है , शुक्ला जी ने नयी कार ले ली है , मिश्रा जी आजकल पैसे छाप रहे , वर्मा जी तो राजा की ज़िन्दगी जी रहे |
बस फिर क्या , तुरंत U - Turn लीजिये , और दोबारा उससे कभी बात न करे |
इंसान बाकि जानवरों से इसीलिए अलग है क्योंकि उसकी बुद्धि विवेकशील है , और वो अपनी बुद्धि बस तेल और आटे के दाम पर ही लगा दे रहा , तो वो जानवर ही कहलाता है |
4 . अपना लक्ष्य ऊँचा रखे :-
लोगों में ये घटिया चलन चलने लग गया है , वो यही कहेंगे " हम तो आम आदमी है साहब , सांसारिक चीज़ों के बीच पीस रहे हैं , हमारा बड़ा लक्ष्य नहीं बस 2 वक्त की रोटी , पहनने को कपडा , एक घर , घर में एक सुन्दर बीवी , 2 - 4 बच्चे , एक इनकम का स्थायी सोर्स , बस यही अपनी ज़िन्दगी हैं "
जब कोई ऐसी बात करे तो उसे बोले , भाई तेरा जीना बेकार है , तू निकल ले अभी , ज़िन्दगी ही नहीं रहेगी तो तेरी टेंशन भी नहीं रहेगी |
अरे कभी बैठकर ये सोचा है की सिर्फ इंसानो की बुद्धि ही क्यों विकसित हुई ? क्या बस 2 वक्त की रोटी और आरामदायक ज़िन्दगी ?
इंसानो के इसी आरामदायक ज़िन्दगी के कारण बाकि जीवों की ज़िन्दगी बर्बाद हो जा रही है |
कुछ ऐसा लक्ष्य रखो जो तुम्हे सुबह उठने पर मजबूर कर दें |
आलस का नामोनिशाँ भी नहीं रहेगा फिर |
बस ऐसे ही 2 - 4 बातें और होंगी , जिसको अपनी ज़िन्दगी में उतारने से आध्यात्मिकता का बीज आपके अंदर पनपने लग जाएगा |
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