क्या यही सोच आपकी है ??
Welcome Friends ,
मेरे नए ब्लॉग में आपका स्वागत है , आशा करता हूँ मेरे पिछले ब्लॉग को आपने पढ़ा होगा , जिसमे मैंने New Year Resolution के बारे में बताया था , जिन्होंने नहीं पढ़ा उनके लिए मैं इस ब्लॉग के नीचे लिंक provide कर दूंगा , तो Resolution में ये हो सकता है , आपमें से किसी ने नया संकल्प लिया ही नहीं होगा , या हो सकता है लिए तो थे पर टूट गयी होगी , और ऐसे भी हो सकता है की वो Resolution अब तक चल रहा हो , खैर जिनका टूट गया वो उदास न हो , एक और मौका है , आज 12 January है , स्वामी विवेकानंद जी का जन्म दिवस जिसे हम युवा दिवस के रूप में मनाते आ रहे है , आज वो दिन है , जब दिखा दे की आप असली युवा है , फिर से वही संकल्प लीजिये और लग जाइये काम पे |
फ्रेंड्स मेरे इस ब्लॉग के टाइटल से तो आप जान ही गए होंगे , आज किस बारे में बात करने वाला हूँ , तो चलिए शुरू करते हैं |
अक्सर आपने लोगों को ये कहते सुना होगा की ज़िन्दगी एक ही मिली है , तो जितने भी काम करने हैं कर लो , जो भी अय्याशी करनी है कर लो | है ना ?
उनका कहना भी गलत नहीं है , एक ही ज़िन्दगी मिली है , जितनी मौज मस्ती करनी है कर लो |
और यही बात वहां विपरीत परिस्थिति में अपना काम करते उस जवान फौजी को भी सोच लेने दो , जिनकी वजह से ये दो चार लोग आप लोग के सामने ये बात कर सक रहे हैं की एक ही ज़िन्दगी है , मौज कर लो |
यही बात उस हॉस्पिटल के डॉक्टर को भी सोच लेने दो , जिसके पास किसी के जान बचाने का मौका हो और वो बोले , मौज कर लेने दो मुझे |
यही बात उस स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर को सोच लेने दो , जिसके पास उन बच्चों की जिम्मेदारी है जो इस देश के भावी भविष्य है |
यही बात उन क्रांतिकारियों को भी सोच लेनी थी , की एक ही ज़िन्दगी है , कौन अपनी जान गंवाए , हम तो रहेंगे नहीं अपनी आज़ादी देखने |
और ऐसे ही कितने उदाहरण है , जिनके बारे में ऐसा सोचने से खुद की रुंह काँप जाएगी , हैं ना ?
अब वो बोलेंगे की ये तो उनका काम है , कर्त्तव्य है |
अच्छा मतलब आप एक जगह बैठके मौज मस्ती के बारे में बोलेंगे और वो आपका हक़ है , पर दूसरे के लिए सिर्फ काम ?
फ्रेंड्स आपके चारों ओर ऐसे ही इंसान अधिकतर मिलते होंगे , और भले ही मुँह से ना बोले पर काम तो अय्याशियों वाला करते होंगे , हैं ना ?
और इसकी शुरुआत कहाँ से हुई ? पता है ?
हमारे समाज और हमारे Education System से |
आप लोग जब किसी आलसी इंसान को देखते हैं तो अंदर से एक भावना उनके लिए उठती होगी है ना ?
पर आपको जो अभी मेहनत करता हुआ दिख रहा है , उसका भी तो अंतिम लक्ष्य अय्याशियां करना , आराम करना , यही बस है | अब उनको क्या बोलेंगे ?
पर हमारे समाज ने यही सिखाया है की मेहनत करों और एक ऐसी जगह पहुँच जाओ जहाँ तुम्हारी ज़िन्दगी ऐशो आराम में कट जाये , जहाँ फिर तुमको मेहनत नहीं करनी होगी |
और यही चीज़ हमारे एजुकेशन सिस्टम में भी घुस चूका है , स्टूडेंट्स को पहले से यही सीखा दिया जाता है , जमकर पढ़ाई करो , और कहीं ऐसी जगह पहुँच जाओ जहाँ तुम्हारी ज़िन्दगी आराम से कटे |
आजकल की शिक्षा ऐसी हो रही है की चरित्र निर्माण पर ध्यान ही नही दिया जा रहा , जो सबसे जरूरी चीज है ।
एक अनपढ़ लेकिन चरित्रवान व्यक्ति कहीं ज्यादा बेहतर है उसके मुकाबले जो बहुत ज्यादा पढ़ा लिखा हो , पर व्यक्तित्व से छिन्न हो ।
अधिकतर लोग बस भागे जा रहे हैं , भागे जा रहे हैं |
जरा रूककर देख तो लो , जा कहाँ रहे हो ? अपने किसी दोस्त को देख लिया , वो ये काम करके इतना कमा रहा , मैं भी कमाऊंगा , समाज कह रहा इस चीज़ में जाओ , तो मैं वही करूँगा |
कभी खुद से पूछा ? की करना क्या है ? चारों तरफ जो तांडव चल रहा वो नहीं दिख रहा ?
ऐसा इंसान किसी नयी जगह चल भी दिया तो वो वहां भी अपनी छोटी सोच को नहीं बदलेगा , बोलेगा की भईया अब तो सेट हो गए , बस यहीं लात तान के बस ज़िन्दगी बिता देनी है , और ऐसे लोगों को हम अपना आदर्श भी मान लेते हैं |
तो बात गलत कहाँ हो जा रही है ?
बात ये गलत हो जा रही है की दिन ब दिन हम और अय्याशीबाज होते जा रहे हैं , जहाँ हमे अपनी ऊर्जा लगानी है वहां हम लगा ही नहीं रहे है |
एक प्रश्न है आपसे , अगर आपके घर में कहीं आग लग जाये तो आप क्या करेंगे ?
1 . क्या ये सोचेंगे की छोड़ो यार , मेरा वाला कमरा तो बहुत दूर है , आग यहाँ नहीं आएगी |
2 . या फिर आप घर के बाकि लोगों को बचाएंगे ? , उन्हें नींद से जगायेंगे ?
उम्मीद है आप दूसरा ऑप्शन चुनेंगे |
तो अभी ऐसा क्या हो गया की आप पहला ऑप्शन चुनकर उस चीज़ को कर भी रहे हो |
क्या आपका परिवार बस 4 लोग में सीमित हो गया ?
बाकि 4 करोड़ लोग कहाँ गए ?
क्या ज़िन्दगी का यही लक्ष्य हो की बस एक ऐसी जगह पहुंच जाएँ जहाँ से ज़िन्दगी ऐशो आराम में कटे ? जरा बाहर निकलकर देखो तो , क्या हो रहा है ?
जानवर मारे जा रहे , संसाधन नष्ट हो रहा है , इंसानियत की धज्जियाँ उड़ रही है , लोग धर्म का गलत व्याख्या कर के खुद का ही नुक्सान कर रहे , पृथ्वी नष्ट हो रही |
ऐसे में हम अगर एक कमरे में बिस्तर पर लेटकर अपने अय्याशियों की ही बातें कर रहे और इस ज़िन्दगी को यूँ ही बर्बाद कर रहे तो फिर लानत है हम पर |
आज 12 january हैं ,स्वामी विवेकानंद जी का जन्म दिन , जिसे हम दूसरे शब्दों में युवा दिवस भी कहते हैं , उन्होंने एक बार कहा था , मुझे 100 युवा मिल जाये तो मैं भारत ही नहीं पूरी दुनिया बदल सकता हूँ , अब आप बोलेंगे की भारत में 100 युवा नहीं है ?
वो इन युवाओ की थोड़ी बात कर रहे जो दिल टूट जाने पर आँसू बहा रहे हैं , एक ही गलती बार बार कर रहे , अपनी क्रिएटिविटी करने वाली ज़िन्दगी में कुछ कर नहीं पाए फिर जब उम्र हो रही तो होश आ रहा की अरे , कुछ करना है ज़िन्दगी में |
वो इन युवाओं की थोड़ी बात कर रहे जो घर के एक कोने में पड़े रहकर सोच रहे की ज़िन्दगी में कुछ करना है , पर मौका नहीं मिल रहा है |
आज का युवा इंस्टाग्राम , ट्विटर , फेसबुक में ही पगला जा रहा है , लड़का किसी लड़की के पीछे पागल , लड़की किसी लड़के के पीछे पागल , फिर जब मिले तो पग्लेति की हद पार कर दे रहे |
कोई टुच्चा सा काम करना हो , उसके लिए भी इनको मोटिवेशन चाहिए |
अरे जब तुमको भूख लगती है , तब क्या कोई मोटिवेशन चाहिए ? जो तुमको मोटीवेट करे की खाना खा ?
जब भूख लगे तो कोई ज़िंदा जानवर तक को खाये जा रहे , पर कोई काम के लिए मोटिवेशन चाहिए |
जब भगत सिंह 23 साल की उम्र में अपनी जान दे सकते है , तो आप ही बताइये उन्हें कहाँ से मोटिवेशन मिला होगा ? और ऐसा भी क्या मोटिवेशन की सीधा फांसी पर चढ़ जाये ?
उनका मोटिवेशन था उनका देश प्रेम , उनका जूनून , अपने चारो ओर देख कर उनको लगता था , इस गुलामी से आज़ाद होना ही है , चाहे खुद की जान क्यों ना गंवानी पड़े |
आज भले वैसी गुलामी नही है पर गुलाम तो हम अभी भी है , कोई अपने रिश्तों का गुलाम है , कोई किसी व्यक्ति का गुलाम है , कोई अपने मन का गुलाम है ।
जिम्मेदारी हमे खुद ही लेनी होगी , कोई राम या कृष्ण नहीं आयेंगे जो हमारा काम करे , इस गुलामी की जंजीर को हमे ही तोड़ना है |
" भगवान् के भरोसे मत बैठे रहो , क्या पता भगवान् आपके भरोसे बैठा हो ? "
सबसे बड़ा मोटिवेशन यही है , की आज का अधिकतर इंसान एक जानवर की ज़िन्दगी जी रहा , बल्कि जानवर तो फिर भी शांत ही रहता है , इंसान तो इतना सब चीज पाकर भी अशांत घूम रहा है , और यही चीज़ से छुटकारा चाहिए , बस |
मौका नहीं मिल रहा ? आज की दुनिया ऐसी है की तुम 2 मिनट चैन नहीं ले पाओगे , और बोल रहे मौका नहीं मिल रहा है | अब ये कहना भी जरुरी है , क्योंकि अब उनको जब पता ही है की बाद में मौज मस्ती , आराम , अय्याशियां ही करनी है तो क्यों ना अभी कर लेते हैं ?
मज़ा आ रहा उनको उनकी हालात पे , तभी तो आगे नहीं बढ़ पा रहे , जब सुबह ,दोपहर , शाम , तीन समय खाने को मिल जा रहा , घूमने के लिए गाड़ी मिल जा रही , मन बहलाने के लिए कोई लड़की ( अगर लड़का है ) , या कोई लड़का ( अगर लड़की है ) , मिल जा रहा तो क्यों उस चीज़ को छोड़कर वो कोई कर्त्तव्य का कार्य करेगा ?
आप ही बताओ , जिस इंसान के पुरे शरीर पर आग लगी हो वो क्या बोलेगा की क्या करू आग बुझाया नहीं जाता मेरे से ? वो तो ऐसा होगा की तुरंत कुछ न कुछ करना ही है खुद को बचाने के लिए , चाहे कोई गन्दी नाली में कूदना ही क्यों ना पड़े |
उनको ऐसा युवा चाहिए जिसके लिए उसका कर्त्तव्य ही धर्म हो , जब तक चीज़ें सही न हो जाए , वो चैन से न बैठ पाए , अपने चारों ओर देख रहे हालातों को वो बदलने को लालायित रहे |
शायद आपको ये पता होगा , की आने वाले 2 महीनो मतलब मार्च 2023 में भारत की आबादी चीन को पीछे छोड़ देगी ।
इसका मतलब है की मार्च से पूरे दुनिया में हमारी आबादी सबसे ज्यादा होगी , और यहां सबसे ज्यादा युवा वर्ग ही है , पर देखा जाए तो जितनी प्रोडक्टिविटी आनी चाहिए उतनी आती नही , क्योंकि अधिकतर युवा तो बेहोशी में ही चल रहा है , वो खुद की काबिलियत को भूल ही गया है , क्या ऐसा होना चाहिए ?
आपने साल 2009 में आयी फिल्म " गुलाल " का एक गाना सुना होगा |
" आरम्भ है प्रचंड " |
उसमे एक पंक्ति है जो बिलकुल आज के युवा के लिए एकदम सटीक बैठता है |
" जिस कवि की कल्पना में , ज़िन्दगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो | "
ज़िन्दगी निरंतर संघर्षो के लिए बनी हैं , जब तक जीवन है , संघर्ष जारी रहेगा |
इसीलिए स्वामी विवेकानंद जी ने वो सन्देश हमे दिया की " उत्तिष्ठत , जाग्रत , प्राप्य वरान्निबोधत | "
उठो , जागो और तब तक चलते रहो जब तक लक्ष्य मिले न |
हम जिस स्वामी विवेकानंद के आदर्शों की बात करते है , उनके भी एक गुरु थे , एक छोटी सी घटना है ।
एक दिन रामकृष्ण परमहंस , स्वामी विवेकानंद जी से पूछते हैं की " तुम्हे क्या चाहिए ? "
तो विवेकानंद जी कहते हैं " मुक्ति "
इस बात पर उनके गुरु कहते है की " मैं तो तुम्हे बहुत ऊंचा लक्ष्य वाला समझ रहा था पर तुम तो केवल अपने ही बारे में सोच रहे "
फिर जन्म हुआ स्वामी जी का , उन्होंने बहुजनहिताय का मार्ग अपनाया ।
तो जब स्वामी विवेकानंद जी को भी ऐसे किसी इंसान की जरूरत पड़ी जो उन्हें सही मार्ग दिखाए तो हमें किसी की जरूरत क्यों नही पड़ेगी ?
पर उसके लिए जरूरी है हमारे चारों ओर उपस्थित लोगों के विचार सही दिशा में हो , आपका दोस्त आपको सीखा रहा की मस्ती कैसे करे ? , अपने समय का दुरुपयोग कैसे करे ? फिर भी आप उसके साथ बने हुए हो।
सबसे पहला काम यही करे की अपने दोस्तों की छंटनी करे।
1 सही दोस्त , 100 गलत दोस्तों से कहीं ज्यादा बेहतर रहेगा ।
अपना लक्ष्य किसी ऊंचे से ऊंचे चीज को बनाइए, ऐसे ही लक्ष्य हो हमारे , ये नही की 4 लोग क्या चाहते हैं उसी में सीमित हो जाना । लक्ष्य कोई सार्थक लक्ष्य हो तभी बात बनेगी , ऐसा नहीं की बड़ी सी एक कार लेनी हैं , सोना खरीदना है , बहुत सारा पैसा कमाना है , एक बड़ा सा घर बनाना है , शादी कर लेनी है , बच्चो को पढ़ाना है अरे पहले खुद को अच्छे से पैदा हो जाओ , तब किसी दूसरे बच्चे की जिम्मेदारी लेना |
सफलता का मतलब क्या ?
सफलता आपके किसी एक जगह पहुंच जाने को नही कहते है , सफलता इससे कहीं ज्यादा आगे की चीज होती है । जो आपको कभी भी रुकना नही सिखाती।
खुद को जानिए , समझिये फिर एक लक्ष्य की ओर बढ़ चलिए |
स्वामी विवेकानंद को आपके जैसा ही युवा चाहिए |
" सिर्फ आप " |
" ONLY YOU " . 👍
इतना बड़ा मुंह , इतना बड़ा पेट ???
😓
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