Hello Friends ,
मैं हूँ आर्यन |
इस ब्लॉग के Title से शायद आपने अंदाजा लगा लिया होगा , की मैं किसी बड़े से जानवर की बात करने जा रहा हूँ , जिसका मुँह बहुत बड़ा है और साथ में पेट भी |
जी हाँ कुछ हद तक आप लोगों ने सही सोचा है , मैं बात करने वाला हूँ उस जानवर की , जो दूसरे जानवरों से ज्यादा विकसित हो गया है , और उसने अपना नाम ही बदल दिया है , कौन है वो ??
सोचो
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सोचो
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जी हाँ उसका नाम है " इंसान " |
हो सकता है आपमें से कुछ लोग को बुरा भी लगे , पर रुकिए जरा , कुछ तर्क मेरी भी सुन लीजिये |
फिर जो बोलना हो , आप कमेंट में बोल दीजियेगा |
आखिर क्यों कह रहा हूँ मैं ऐसा ?
इंसान का मुँह तो बाकि जानवरों से छोटा ही होता है , जैसे हाथी , शेर , भालू , वगैरह वगैरह |
उसका मुँह भी छोटा होता है , ठीक ?
तो मैं बात उस मुँह और पेट की नहीं कर रहा जो आपको बाहर से दिखता है , बल्कि उसकी बात कर रहा , जो आंतरिक है |
जब एक बच्चा पैदा होता है , उसके दूसरे क्षण से ही उसका भविष्य तय कर लिया जाता है , की ये ( लड़का या लड़की ) ये पढ़ाई करेगी ,कितना पढाई करेगी , ये बनेगी या बनेगा , अब शादी करेगा , ऐसा कुछ |
फिर वो ज़िन्दगी की रेस में चल पड़ता है , जहाँ भागना ही नहीं है , बल्कि तेज़ी से भागना है |
उसे भी ये नहीं पता की क्यों कर रहा है , बस दूसरे बोल रहे इसीलिए कर रहा है , फिर वो जैसे तैसे पढाई कर भी लिया , कोई सा भी नौकरी कर ही लिया | उसके बाद क्या ??
अब शुरू होती है उसकी असली पहचान , पहले तो वो दूसरों के हिसाब से चल रहा होता है , पर अब वो खुद की ज़िन्दगी खुद ही संभालेगा |
लेकिन 100 में से 98 लोग इसमें गलत रास्ते का चुनाव करते हैं , अब उनका असली चेहरा सामने आता है , उनका बड़ा सा मुँह खुलता है , और उसके बड़े से पेट में चीज़ें जानी शुरू होती है |
दुनिया में जो भी भोग की चीज़ें हैं वो सब मेरे पास ही आये , अब वो अपनी चादर फैलाना शुरू करता है , मुझे नए नए संसाधन चाहिए , जिनका मैं भोग कर सकूँ |
पहले जो चीज़ें उसके लिए बेकार थी , अब वो उसके लिए जरुरत की चीज़ें हो रही है |
पहले एक महंगा सा फ़ोन उसके लिए फालतू चीज़ थी , क्योंकि उसके पास एक पुराना फ़ोन है , जिसमे उसके काम की सब चीज़ें पूरी हो जाती है , पर जैसे ही उसकी स्थिति पहले से बदली , वही फ़ोन उसके लिए रद्दी हो गया |
पहले उसके पास एक बाइक थी , जिस पर वो बैठकर अपने दोस्तों को घुमा रहा , पढ़ने के लिए कॉलेज जा रहा , पर अब वही बाइक उसको खटक रही , अब ज्यादा महँगी बाइक चाहिए , क्योंकि पुरानी बाइक उसे जच नहीं रही है |
पहले वो जितना भी कमाता था , अंदर से एक शान्ति थी , पर अब वो इधर उधर हाथ पांव मार रहा है , की कुछ 2 - 4 पैसे आ जाये तो अच्छा हो जाता |
ऐसे लोगों को कुछ बोल दो कहेंगे , पेट के लिए तो कुछ करना ही पड़ेगा ना ?
अरे कितना बड़ा पेट है तुम्हारा ? की सब चीज़ें पेट में ही जा रही है ?
आपने कभी किसी गाय , कुत्ते , भैस या बकरी को देखा है ? जिसका पेट भर गया हो ?
क्या वो तब भी इधर उधर अपना मुँह मारती है ? नहीं |
अगर किसी शेर का पेट भरा हो , तो उसका कोई शिकार पास से ही क्यों न गुजर जाये , उसे रत्ती भर फर्क नहीं पड़ता है |
अब इसी जगह इंसान को ले लो , भरा पूरा परिवार है , अगर नौकरी में है तो सैलरी महीने में आ ही रही है , या बिज़नेस है तो अपने और परिवार के लिए कमा भी लेता है , पर वो इंसान आपको उतना ही ज्यादा मुँह खोले नज़र आएगा , उसे और चाहिए , जिससे उसका बड़ा सा पेट भर सके , सही है न ?
आप किसी भी इंसान से पूछ लो , और भई कैसा चल रहा है ? क्या तुम खुश हो ? अपने परिवार से , अपनी आमदनी से , या कुछ ? तो वो क्या बोलेगा ?
पूछों भी मत , और अपनी फालतू सी 4 - 5 समस्याओ को गिना ही देगा , जो उसने अपने हाथों से ही बनाई है |
आप किसी सरकारी नौकरी को ही देख लो , उस नौकरी में लगने से पहले का इंसान को देख लो और बाद का देख लो , पता लग जायेगा |
पहले उसकी बातें ऐसी होंगी की पूरी दुनिया को हिला सकता है , फिर बाद में ?
बाद में वो अपनी छोटी छोटी समस्याओं पर रोता दिखाई देगा , और उसे याद दिलाओगे की इतने साल पहले तुमने ये बोला था , ये काम करना था , तो बोलेगा " अभी मेरी खुद की समस्याएं ख़त्म नहीं हो रही है , दुनिया को क्या देखें ? "
चलो बहुत अच्छी बात है , आपने मेहनत किया , इस मुकाम को हासिल कर लिए , पर क्या केवल हम ही ऐसे है जो ऐसा किया होगा ? दुनिया में लाखों मिल जायेंगे आपकी तरह , पर केवल एक चीज़ नहीं मिलेगा , वो क्या है ?
वो है दूसरों के प्रति दया और आत्मसंतुष्टि |
और यही वो चीज़ें है जो आपको दूसरे इंसानो से अलग करती है |
अगर आप सोच रहे , ये चीज़ मुझे मिल जाए तो मज़ा आ जायेगा , कुछ ज्यादा पैसा मिल जाये तो ये समस्या ख़त्म हो जाएगी तो आप बिलकुल गलत है , जब तक सही लक्ष्य न रखो , तब तक चीज़ें बेकार है , पैसा बेकार है |
पैसा बेकार है ?
अरे ये क्या कह दिया ?
ऐसा सोच रहे ?
जी हाँ अगर आप केवल अपनी इच्छाओं को पूरी करने के खातिर पैसा चाह रहे तो बेकार है पैसा कमाना क्योंकि इच्छाएं बढ़ती ही जाएगी |
आप किसी व्यक्ति से पूछिए जो कमा रहा हो , की क्या वो अपनी तनख्वाह से खुश है ?
जवाब क्या आएगा ?
" बहुत कम है , नहीं होता गुजारा , दूसरों की क्या मदद करे ? "
आप ही बताइये , जब उसने वो नौकरी की होगी तो क्या उसे पता नहीं होगा की कितना तनख्वाह है उसका ? सब जानकर ही तो उसने काम शुरू किया न ?
अगर कम था तो दूसरी नौकरी कर लेता जिसमे ज्यादा पैसा हो |
पर ज्यादा तनख्वाह में भी उसका जवाब वही रहता |
असली चीज़ ये है की उसने अपना दायरा बढ़ा दिया नौकरी के बाद , अब उसे अपने को लोगों के सामने दिखाना है , की वो भी पैसा कमा रहा है , और उसे अब वो सब चीज़े चाहिए जिससे भोगा जा सकता हो |
आप अपने सीनियर को ही देख लीजिये , आपसे ज्यादा सैलरी और वो आपसे ज्यादा रो भी रहा होगा |
सही न ?
आपने अगर गौतम बुद्ध के विचारों को समझा है , तो आपको समझ आ जाएगा , उन्होंने कहा है पूरी दुनिया एक ही सिद्धांत पर चलती है , वो है " प्रतीत्यसमुत्पाद " |
इसका अर्थ है , किसी वस्तु की प्राप्ति होने पर अन्य वस्तु की उत्पत्ति होती है |
अर्थात कोई समस्या आपको सता रही , इसका मतलब है उसकी उत्पत्ति भी आप ही के द्वारा हुई है , क्योंकि इंसान अपना पेट इतना बढ़ा लिया है की उसे हर दिन कुछ न कुछ चाहिए ही , आये दिन कोई नयी इच्छा पाल लिए रहता है , फिर उस इच्छा को पूरा करने के लिए अपनी ऊर्जा , समय और पैसा लगा रहा है |
इसीलिए पैसा कमाना तभी सार्थक है , जब आपके पास कोई ऊँचा लक्ष्य है उसे खर्च करने को |
अब यहाँ ऐसा भी नहीं की आपने सोच लिया , एक बड़ी कार खरीदनी है , अपने सन्तानो के लिए पैसा जमा करना है , वगैरह वगैरह |
ऊँचा लक्ष्य मतलब जिससे आपको शांति मिले , ना की आपकी पहले की शांति और छीन जाये |
अगर आपकी आमदनी इतनी है , की आपकी मुलभुत आवश्यकता पूरी भी हो रही और कुछ बच भी रही तो उसी पैसे को आप दूसरे जीवों के लिए लगा सकते हैं , किसी बेसहारा का सहारा बन सकते है |
अब यहाँ ऐसा तर्क बिलकुल मत दीजियेगा की हमारी आमदनी से हमारा खुद का खर्च निकलता है , अगर दूसरों के लिए कुछ करना है , तो हमे ज्यादा पैसा चाहिए ही होगा |
ऐसा बिलकुल नहीं है , इससे आपकी इच्छा और बढ़ जाएगी , जो मुँह पहले से बड़ा है वो और बढ़ जाएगा |
फ्रेंड्स अगर देखा जाये तो इस पूरी प्रकृति में केवल इंसान ही ऐसा है , जो सोच समझ सकता है , नए नए अविष्कार कर सकता है , अपार शक्ति उसके हाथों की मुट्ठी में कैद है |
पर इसका ये बिलकुल अर्थ नहीं की इंसान पूरी प्रकृति का बाप बनकर बैठ जाए |
जानवरों को काटे जा रहा , केवल अपने स्वार्थ के लिए |
पानी बहा दे रहा , जंगल काट रहा , अब इंसान अपनी हैसियत से ज्यादा ही पैर फैला रहा है |
जरुरत है तो एक सेकंड रूककर सोचने की , सिर्फ अपने और अपने परिवार का नहीं सोचना है , पूरी दुनिया हमारा परिवार है , " वसुधैव कुटुंबकम " |
एक बार किसी जानवर को खिला के तो देखो |
एक बार किसी भूखे की भूख मिटा के तो देखो |
रोज़ तो 3 बार खा ही रहे तो , रात में जब खाना बनाओ तो थोड़ा सा चांवल और बना दो , और घर के बाहर रख दो , क्या पता उस रात कोई भूखा ना सोये |
तो एक बार सोचिये जरूर , इसमें कोई पैसा नहीं लगता |
फ्रेंड्स एक वीडियो का लिंक शेयर कर रहा हूँ , 3 मिनट की वीडियो है , मुझे लग रहा है , वो वीडियो इस ब्लॉग के लिए बहुत सही है |
अगर वक्त हो तो जरूर देखिये , सिर्फ 3 मिनट |
Thank You All to Read This Blog.....
Kindly Comment if Any Suggestion or else.......
Right godliness
ReplyDelete👌👌👌
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