डार्विन और आइंस्टीन , वर्तमान के अवतार ||
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हैल्लो दोस्तों |
इस ब्लॉग के शीर्षक को आप देख ही चुके हैं , और शायद ही कोई होगा जो ये दो नाम नहीं जानता हो |
हम किताबों में इन दो वैज्ञानिकों डार्विन और आइंस्टीन के नाम पढ़ते आये हैं , आप घबराइए नहीं , मैं यहाँ विज्ञान की कक्षा शुरू नहीं करने वाला 😇 |
दोस्तों मैंने यहाँ एक शब्द उपयोग किया है , "अवतार " |
आप को लग रहा होगा की ये शब्द तो देवी देवताओं के लिए उपयोग करते हैं , कहाँ यहाँ वैज्ञानिकों के लिए उपयोग किया जा रहा है ,
पर आप लोगों को ये बताना चाहूंगा की डार्विन और आइंस्टीन ने दो सिद्धांत दिए थे , और अगर उसकी जड़ तक पहुंचा जाए तो उन्होंने ऐसी बात कह दी जो किसी अवतार के वाक्य से कम नहीं , और वो सिद्धांत कौन से है ??
चार्ल्स डार्विन :- " Everyone Is Relative " , " सभी एक दूसरे से सम्बंधित है | "
अल्बर्ट आइंस्टीन :- " Everything Is Relative " , " सभी एक दूसरे के सापेक्ष है | "
दोस्तों यही वो दो सिद्धांत है , जिसे अगर अच्छे से जान लिया जाए तो आपकी ज़िन्दगी पूरी तरह बदल जाएगी , कैसे ?
चलिए इसे आसान करते हैं |
चार्ल्स डार्विन
वैज्ञानिक सोच :-
साल 1859 को चार्ल्स डार्विन की एक पुस्तक प्रकाशित हुई , जिसका नाम था " On The Origin Of Species " , "ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़" , इसमें उन्होंने विकासवाद का सिद्धांत दिया , जिसने पूरी मानव जाति की व्याख्या ही बदल डाली |
इसमें उन्होंने बताया की वर्तमान के मानव शरीर का वास्तविक शुरुआत कहाँ से हुई , और केवल मानव शरीर ही नहीं बल्कि बाकि प्रजातियों का वर्तमान रूप कैसे बना , इस पुस्तक में उन्होंने बताया की इस पूरी दुनिया में सभी प्रजाति के जीव , एक दूसरे से सम्बन्ध रखते हैं , जो जीव हम आज देखते हैं , वो बिलकुल वैसे ही शुरू से नहीं थे बल्कि उनमें परिवर्तन होते गए , उस समय का मानव भी आज के मानव जैसा नहीं था , आकृति और आकार में कई सारी विभिन्नताएँ थी |
मछली पानी के बाहर साँस नहीं ले सकती , पर डॉलफिन और व्हेल ऐसी दो प्रजाति है जिसे साँस लेने के लिए पानी के बाहर आना पड़ता है | , कैसे ?
बाघ , शेर , चीता , सभी बिल्ली की ही प्रजाति है |

तो एक वाक्य में कहा जाए तो डार्विन का सिद्धांत सभी जीवों को आपस में जोड़ता है |
आध्यात्मिक सोच :-
अब अगर डार्विन के सिद्धांत का आध्यात्मिक पक्ष देखें तो जितने भी पूज्यनीय पुरुष जैसे राम , कृष्ण , बुद्ध , महावीर हुए , और साथ ही साथ जितने भी धर्म ग्रन्थ हमे मिलते हैं , उसमे भी प्रकृति के सभी जड़ - चेतन को समान दृष्टि से ही देखने की बात कही जाती है , सभी कहते हैं पहाड़ , नदी , जानवर , मनुष्य , प्रकृति के सभी घटकों का आदर कीजिये |
बुद्ध ने दया , अहिंसा , करुणा की बात की , महावीर स्वामी ने भी यही कहा , कृष्ण भगवद्गीता में भी यही कह रहे |
सभी प्राणी एक दूसरे से सम्बंधित है | ये जात - पात , बड़ा - छोटा , छुत - अछूत सब सिर्फ मानसिक उपज है , वास्तविकता का उससे कोई लेना देना नहीं है |
अल्बर्ट आइंस्टीन
वैज्ञानिक सोच :-
दोस्तों इनके सिद्धांत को मैं आसान भाषा मैं कहूं तो ये है की " ब्रह्माण्ड में कोई भी वस्तु पूर्णतया सत्य नहीं है , हर वस्तु की स्थिति , उसकी व्याख्या , बाकि दूसरी चीज़ों पर निर्भर करती है , निरपेक्ष कुछ भी नहीं , सभी सापेक्ष है | "
चलिए एक उदाहरण से समझाता हूँ -
आप सभी क्रिकेट मैच देखते ही होंगे , अभी आईपीएल भी चल रहा है |
अब मैं यहाँ दो स्थितियां रखता हूँ -
1 - अगर भारत और ऑस्ट्रेलिया का मैच चल रहा हो , तो आप क्या चाहेंगे ? की भारत मैच जीत जाये , विराट कोहली ( आप यहाँ दूसरा क्रिकेटर भी ले सकते हैं ) बहुत सारे रन बनाये , आप चाहेंगे की नहीं ? और अगर वो आउट हो जाए ? तो ?
2 - अब आईपीएल में मैच चल रहा है , RCB Vs CSK , मान लीजिये आप CSK को सपोर्ट करते हैं , अब आप क्या चाहेंगे ? , यही न की विराट कोहली जल्दी आउट हो जाए ?
तो देखा आपने , खिलाडी एक ही है पर उसे देखने का नजरिया हमारा किस पर निर्भर कर रहा ? की हम कौन सी टीम को सपोर्ट करते हैं |
कहने को तो ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज़ों के छक्के मारने पर कोई भारतीय खुश नहीं होगा , पर वही बल्लेबाज अगर आईपीएल में आपके सपोर्ट किये हुए टीम में रहे तो उसके चौके , छक्के मारने पर आप बहुत खुश होंगे |
मेरे पास एक और उदहारण है :-
जब आप किसी वाहन जैसे बस , ट्रैन , कार में सफर करते हैं तो अगर आपसे पूछा जाए की आपके साथ सीट पर बैठा व्यक्ति गति कर रहा या स्थिर है , तो आप कहेंगे की स्थिर है |
पर अगर आप वाहन के बाहर खड़े हुए हो , तो कहेंगे की वो यात्री गति कर रहा है , सही है ?
तो मुझे लगता है आपको समझ आ गया होगा , की सापेक्षता कैसे काम करता है |
आध्यात्मिक सोच :-
दोस्तों अब बात करते हैं इस सिद्धांत के आध्यात्मिक पक्ष की तो साधारण सा मतलब है , एक हिन्दू को राम , कृष्ण प्यारे हैं , एक मुसलमान को मोहम्मद पैगम्बर , उसी तरह ईसाई को जीसस , अगर एक हिन्दू किसी मस्जिद में जाये तो उसे वैसा महसूस नहीं होगा जैसा उसे मंदिर जाने पर होता है , उसी तरह एक ईसाई अगर मंदिर में कदम रखे तो उसे चर्च जैसी कोई भावना महसूस नहीं होगी |
कहने का मतलब है दोस्तों की ये ब्रह्माण्ड सापेक्षता पर चलता है , हम किसी को ये नहीं कह सकते की तुम गलत हो और हम सही , हर वस्तु , सिद्धांत , धर्म , दर्शन इन सबका नज़रिये के हिसाब से ही व्याख्या किया जाता है , असली गलती यहाँ होती है की हम सिर्फ अपने नज़रिये को ही सही ठहराते हैं बाकि को गलत |
तो दोस्तों शायद अब आप मेरी इस नज़रिये से सहमत होंगे , की डार्विन और आइंस्टीन , इनके सिद्धांत कोई मामूली सिद्धांत नहीं थे बल्कि मानवता के लिए एक नए आयामों से सोचने का नजरिया विकसित करते हैं |
तो अब से जब आप किसी से तर्क - वितर्क , लड़ाई - झगडे , बहस करे तो उसके नज़रिये से भी सोचियेगा |
-------------- आपका नजरिया आपके हाथ ----------------
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Good work
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