आखिर मिल ही गया मंत्र ||
Hello Friends ,
मैं हूँ आर्यन , और लेकर आया हूँ नया ब्लॉग , वैसे ये टॉपिक देख के आपको लग रहा होगा , की सिस्टम जहाँ हम रहते हैं , जिस समाज में रहते हैं इसे बदलने के वही पुराने तरकीबें होंगी , जैसे अच्छे से पढाई करिए , कुछ बनिए , बहुत सारा पैसा कमाइए , फिर सिस्टम को सुधारिये , या आप ये भी सोच रहे होंगे की ये सब वैसा ही चलता रहेगा जैसा चल रहा है , बस कान में तेल डाल कर अपना काम करिये |
पर नहीं ऐसी कोई भी बातें नहीं होने वाली , आपको मैं वही तरकीब बताऊंगा जो आप ये ब्लॉग पढ़ने के तुरंत बाद से ही आजमा सकते हैं |
भरोसा रखिये !!!!
तो फ्रेंड्स पहले हम बात करते हैं , कुछ लोगों की जो हमारे पास हैं और हो सकता हैं आप भी उनमे से एक हो ---
आपने लोगों को ये कहते हुए जरूर सुना होगा की ये नेता बहुत बेईमान हैं , वो अधिकारी रिश्वतखोर है , ऐसे कई सारे कमेंट आपने सुना ही होगा , हैं न ?
किसी व्यवसायी के बारे में आपने सुना होगा , की वो इंसान बहुत पैसे लूटता है , बहुत कंजूस है , या ऐसे ही कुछ वाक्य |
हो सकता है आपने भी कभी ये वाक्य बोले होंगे ! !!!
चलिए अब फ़्रस्ट्रेशन में इंसान बोल भी देता है , मानता हूँ |
पर मेरा भी एक प्रश्न है -
वो नेता , वो अधिकारी , वो व्यवसायी आया कहाँ से ?
किसी दूसरे दुनिया से तो नहीं होगा न ?
इसका मतलब ये हुआ की वो हममें से ही एक है , हमारे इसी सिस्टम , इसी समाज से आया है , सही है न ?
अब थोड़ा और आगे जाइये , वो हममें से एक ही है , पर हम तो ईमानदार हैं तो वो बेईमान कैसे हो गया ?
उसने ऐसा शिक्षा कहाँ से पाया होगा किसी को लूटने का , रिश्वत लेने का ??
हमसे ही ना , मतलब ( समाज से ) ?
बस यहीं हम मार खा जाते हैं |
हम ये सोचते हैं की हम सही है , पर ये नहीं सोचते सामने वाले ने गलत चीज़ का ज्ञान आखिरकार हमसे ही तो लिया है , तो फिर हम सही कहाँ हुए ???
बस यही चीज़ कई शताब्दियों , दशकों से चली आ रही है , हम ऊँगली दूसरों पर रखते है की गलती उनकी है , वो ऊँगली हम पर रखते हैं की गलती हमारी है , और दोनों ही गलत रास्ते पर चल रहे होते हैं , और धीरे - धीरे आज हमारी दुनिया , हमारा समाज , हमारा सिस्टम इतना बिगड़ चूका है |
चलिए इसे कुछ और सरल भाषा में समझाता हूँ |
जनता की किस्मत उसके अपने हाथ :-
एक मंत्री हैं जो बिना पैसों के काम नहीं करता , वो अपने क्षेत्र की जनता का हाल चाल भी पूछने नहीं जाती , और कुछ नियम भी ऐसे बना दिए की वहां की जनता उसे गलियां दे रही , की वो मंत्री अच्छा नहीं हैं , लालची है , वो हमारा विकास नहीं चाहता |||
अब मैं आपसे पूछता हूँ , वो मंत्री , मंत्री कैसे बना ? भारत में तो लोकतंत्र है ना ?? मतलब उस क्षेत्र की जनता ने ही तो चुनकर भेजा है , मलतब वो मंत्री लालची नहीं बल्कि खुद जनता लालची है तभी उसे चुना गया है , उस क्षेत्र की जनता ने पैसे या कुछ मुफ्त की चीज़ों के लालच से उसे मंत्री पद तक लाकर बैठा दिया , अब वही जनता उन्हें गालियां निकाल रही हैं |
वो मंत्री नहीं बनता तो कोई और बनता , क्योंकि मुफ्त की चीज़ों के पीछे लालच तो आम जनता का है ही !!!
हम एक सही इंसान को वोट देंगे ही नहीं , आपने सुना होगा , कोई बोलता है उस चुनाव में इतना करोड़ खर्च हुआ , इतना प्रचार प्रसार किया गया , क्यों ??
करोड़ों क्यों खर्च करना ? आपने नजर में वो इंसान सही है , उसे आप वोट देंगे , बस इतनी सी बात है |
पर नहीं , वास्तव में तो आप उसे वोट देंगे जो आपको बदले में कुछ दे , पैसे , वस्तुएं , भौतिक सुख - सुविधाएं |
अब जो इंसान सही हैं , वो तो ईमानदारी से ही चुनाव लड़ना चाहेगा , पर आप उसे जिताएंगे नहीं |
तो बताइये , वो भ्रष्ट मंत्री गलत हुआ की उसे जिताने वाली जनता ?
मैं कुछ कर दिखाऊंगा :-
अक्सर बचपन से ही हमारे दिमाग में ये बातें फिट कर दी जाती हैं की बड़े होकर क्या बनना है , ये नहीं पूछा जाता की क्यों बनना है ? और एकदम सकारात्मक चीज़ें भी हमारे सामने पेश की जाती हैं की -
बेटा बड़े होकर क्या बनोगे ?
बेटा - कलेक्टर !
क्यों बनना चाहते हो बेटा ?
बेटा - ताकि लोगों का भला कर सकूँ , सिस्टम को चेंज कर सकूँ !
अब एक होड़ मच जाएगा , ऐसे उच्च अधिकारी बनने की , सिस्टम चेंज करना है , ये अधिकारी बनेंगे |
लोग बन भी जाते हैं ? फिर ?
फिर इन्हे पता चलता है , की सिस्टम चेंज करना तो दूर , इस पर ऊँगली उठाना भी गलत है |
अब उस उच्च अधिकारी को एक कॉल आता है , किसका ? उस मंत्री का |
वो मंत्री कह रहा है , हमने चुनाव के समय बोला था की मुफ्त टीवी बाँटेंगे , हर गांव के 5 किमी में शराब की एक दूकान देंगे , हर घर में बुजुर्गों को 500 - 500 रुपये देंगे , तो ऐसा करो तुम्हारे क्षेत्र में कितने घर हैं , वहां कितने बुजुर्ग हैं ये आंकड़े व्यवस्थित करके रखों |
उच्च अधिकारी अब बैठे - बैठे सोच रहा है , क्या मैं बुजुर्गों की गिनती करने के लिए अधिकारी बना था ?
आप सिर्फ मेरी बातों पर मत जाइये , खुद सोचिये , अगर आप कहीं नौकरी करते हैं तब तो और जल्दी से समझ जायेंगे , की क्या सोचे रहते हैं और होता क्या है ?
अब ऊपर के दोनों उदाहरणों को देखिये , आपको लगेगा की सबसे ऊपर कौन बैठा है ? नेता लोग | उन्ही के अनुसार सब काम होता है , पर सोचिये नेता के ऊपर भी कौन बैठा है ?
वो है आप , यानि आम जनता |
जनता जैसी होगी , वैसे ही मंत्री चुनेगी , और मंत्री जैसे होगा वैसे ही वह काम करेगा |
तो कुल मिलकर कहा जाये तो सिस्टम को बदलने के लिए आपको सिस्टम में ही घुसना है , ये सोच बिलकुल काम नहीं आएगी , हमें अगर सिस्टम को बदलना है तो जनता ( लोगों ) को बदलना होगा , और लोगों को बदलने के लिए पहले खुद को बदलना होगा |
खुद बदलना नहीं चाहते और सोच रहे हैं सब सही हो जाये |
सोच रहे हैं एक मेरे ही टैक्स न देने से क्या होगा ? सब तो दे ही रहे हैं |
एक मेरे ही रिश्वत लेने से किसी का क्या बिगड़ेगा ?
एक मेरे ही शराब पीने से किसी का क्या नुक्सान होगा ?
एक मेरे ही गाड़ी से धुंआ निकलने से क्या होगा ?
सोचिये अगर यही सोच सब लोगों के अंदर आ जाये तो ?
तो बचा क्या ?
शुक्र है , आज भी ऐसे लोग हैं जो केवल अपने बारे में नहीं सोचते बल्कि दूसरों की तरक्की का सोचते हैं |
एक डॉक्टर की सोच :-
मान लीजिये आपको डॉक्टर बनना है , क्यों बनना है क्योंकि आप चाहते हैं की लोग स्वस्थ रहे , आपने डॉक्टरी की पढाई भी कर ली , अब आप घर बैठे हैं ताकि अच्छे से मेहनत करके किसी सरकारी या किसी बड़े से प्राइवेट हॉस्पिटल में जाके लोगों का ईलाज कर सके |
अगर आप उस जगह जाने में नाकाम रहे , फिर आप अपने भूतकाल को याद करके पछतायेंगे , क्यों पढाई किया मैंने ? , आप अब अपना वो लक्ष्य भूल ही गए की आपने तो लोगों को स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए डॉक्टरी की थी , या फिर मान लीजिये 5 -7 साल तैयारी करके आप पहुँच भी गए , फिर ? फिर आप अपनी मोटी फीस के तौर पर उस 7 साल का हर्जाना वसूलेंगे , यही तो होता है ना ?
अगर आपमें लोगों तक सस्ती स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराना ही लक्ष्य होता तो जिस दिन डॉक्टरी की पढाई की उसके बाद से ही लोगों पर ध्यान देना शुरू कर देते , पर ऐसा नहीं हुआ ?
डॉक्टरी के पीछे एक ही लक्ष्य था की " मोटी रकम " कमा सके |||
आज के समय में अधिकांश लोग ऐसे ही हैं , अपने लालच को किसी अच्छे उद्देश्य का कपड़ा पहना देंगे और लग जायेंगे लोगों को लूटने |
याद करो उन क्रांतिकारियों को :-
हमारे देश की आज़ादी के लिए जितने भी महान क्रांतिकारी हुए , उनमें अधिकांश लोगों ने खूब पढाई की थी , गाँधी जी को देख लीजिये , वकालत की पढाई की थी , पर आपने कभी सोचा ? की जब वो भारत आये तो ऐसा भी बोल सकते थे की " लोगों की मदद में वकील बनकर करूंगा , वो लोग मेरे पास आएंगे , मुझे फीस देंगे फिर मैं उनकी मदद करूँगा , ये मैं जनसेवा ही कर रहा हूँ | "
वो चाहते तो ऐसा कर सकते थे , पर उनको लगा की काम बहुत ज्यादा है , और ऐसे वकालत से काम नहीं बनेगा , खुद को न्योछावर कर दिया , हमारे लिए |
भगत सिंह जी ने स्नातक तक की पढ़ाई की थी , उन्होंने सोचा था की " स्नातक करके मैं अंग्रेज़ों के बराबर का अधिकारी बन कर भारत को आज़ादी दिलाऊंगा ? " नहीं , क्योंकि इतना समय नहीं था , न ही ये उपाय कारगर होता | मात्र 23 - 24 साल की उम्र में फांसी पर हॅसते हुए झूल गए |
नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी ने तो सिविल सेवा का ही त्याग कर दिया , और कूद पड़े आज़ादी के लिए भीषण रण में |
देखिये यहाँ मैं ऐसा नहीं कह रहा की आप जहाँ अभी हैं , किसी नौकरी में है , या किसी एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं तो उसे छोड़ देना बेहतर हैं , बल्कि ये कह रहा की जो लोग सिस्टम में घुसकर सिस्टम को ठीक करने की सोच रहे होंगे , तो माफ़ कीजिये , सफलता शायद ही मिलेगी आपको |
पहले सबसे आधारभूत चीज़ों से शुरुआत करिये , जब आधार मजबूत बनेगा तो उस पर कितनी ही बड़ी ईमारत खड़ी करिये , वो अडिग रहेगा , और सिस्टम बदल के रहेगा , थोड़ा आप कोशिश कीजिये , थोड़ा हम कोशिश करते हैं |
पहले खुद को बदलिए , फिर आपको दुनिया बदलने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी , वो बदलती चली जाएगी |
!! जय हिन्द !!
THANK YOU TO READ MY BLOG ......