INDEPENDENCE DAY SPECIAL
HELLO FRIENDS ,
मैं हूँ आर्यन , आज लेकर आया हूँ नया टॉपिक , क्यूंकि आज है कुछ ख़ास | |
दोस्तों आप सभी जानते है की आज का दिन क्यों ख़ास है , आज है 15 अगस्त , और 74 साल पहले 15 अगस्त 1947 को हमारा देश भारत , आज़ाद हुआ था अंग्रेजों की गुलामी से , वैसे आप सभी ये सब पहले से जानते है , तो बिना समय गवाएं चलिए शुरू करते है ब्लॉग को |
फ्रेंड्स , आज मैं बात करने जा रहा हूँ , आज़ादी के असली मायनों के बारे में , हमने क्या सोचा था , और क्या हो रहा ?
भूत काल की घटना :-
चलिए हम चलते है इंडिया के भूतकाल में , जहाँ अंग्रेजों ने शुरुआत की थी गुलाम बनाने की प्रथा , लेकिन जैसे हम बोलने और लिखने में गुलामी शब्द को आसान समझते है ये उतना है नहीं , थोड़ा सोच के ही देखिये , क्या होगा आपको कहीं भी जाने , घूमने , काम करने , पढ़ने की कोई आज़ादी न हो , कितना डरावना लगता है न ?
सोचो , अभी जैसे हम पूरी दुनिया घूम सकते है , पहले ऐसा नहीं था , आपको अपने पसंद की पढाई करने , नौकरी करने की कोई आज़ादी नहीं हो , अगर आवाज उठाये तो जान से हाथ धोना पड़ेगा , सुबह उठने से लेकर , रात को सोने तक , दूसरे के द्वारा दी हुई ज़िन्दगी जीना , है न कितना भयानक ?
कैसा लगेगा जब आपके द्वारा कमाया गया पैसा का उपयोग आप खुद नहीं कर सके ? , आपके उगाये उगाये फसलों को आप खुद नहीं खा सके ?
आया क्रांति का दिन :-
आखिर कब तक ऐसा चलता ? , कहते है जब पाप और अत्याचार बढ़ जाता है , तो ऐसी क्रांति जरूर आती है , जो सभी चीज़ों को ठीक कर दे , और ऐसा ही हुआ |
भगत सिंह , चंद्रशेखर आज़ाद , रामप्रसाद बिस्मिल , महात्मा गाँधी , सुभाष चंद्र बोश , बाल गंगाधर तिलक , जवाहर लाल नेहरू , भीमराव अम्बेडकर , इत्यादि। .........
ऐसे कई नाम है जिन्होंने एक सोच को बनाया , वो सोच था कुछ करने का , केवल अपने लिए नहीं , बल्कि दूसरों के लिए , ये वो योद्धा थे जिन्होंने हमे अपनी वर्तमान परिस्थिति तक पहुंचाया |
भगत सिंह :-
केवल 24 साल तक जीवित रहे , मतलब हमारी उम्र तक , बल्कि हमसे कम उम्र तक |
सोचिये 24 साल , जिसमे हम अभी केवल अपने भविष्य निर्माण को देख रहे , वो भी रोते - गाते हुए ज़िन्दगी जी रहे , जी नहीं रहे बल्कि काट रहे |
चंद्रशेखर आज़ाद :-
ये भी भगत सिंह के दोस्त थे , महज 25 साल की उम्र में शहीद हुए , क्या इन्हे ये नहीं सोचना था की जो लड़ रहा उसे लड़ने दो , मैं तो अपना देखूंगा ?
आज़ादी की नींव के हस्ताक्षर :-
दैनिक भास्कर समाचार पत्र में एक अनोखी चीज़ आज 15 अगस्त के उपलक्ष्य में रखा गया है , और वो ये है की इसने एक फ्रेम सजाया है , जो हमारे शहीदों के हस्ताक्षर से भरा हुआ है |
इसे देखने के लिए सिंपल निचे दिए बटन पे क्लिक करिये और डाउनलोड करिये. 👇
वर्तमान स्थिति :-
अब अगर मैं आज की स्थिति को देखूं तो , लगता है , लड़ना तो दूर , हम उन वीरों के शहादत को याद करले तो बहुत बड़ी बात है , मुझे एक कवी शैलेश लोधा की वो 4 LINES याद आ रही है ,
कभी सलमान के बालों , कभी कटरीना के गालों पे मर गए ,
कभी सूरत तो कभी चालों पे मर गए ,
ऊपर बैठ के भगत सिंह भी राजगुरु और सुखदेव से कह रहे होंगे ,
की कहाँ हम भी इन सालों पे मर गए। ...
हम आज उन्ही के वंशज है जिन्होंने देश के लिए , अपने अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी है , पर हम उनके विपरीत है , हम अभी भी गुलाम बने हुए है , या तो अपनी आदतों के , या किसी व्यक्ति के , या अपनी हालातों के ,
आज हम पढाई करने , कुछ करने के लिए मोटिवेशनल वीडियोस सर्च करते है , क्या इसकी जरुरत सच में है ?
क्या पहले ये सब हुआ करता था ? , क्या भगत सिंह को किसी मोटिवेशनल स्पीकर ने कहा था की अँगरेज़ असेंबली में बम फेंक कर खुद को फांसी पे लटका देना ?
क्या चंद्रशेखर आज़ाद को किसी ने कहा की 1 ही पिस्तौल से लड़ते हुए , आखिरी गोली बचने पर खुद को ही मार देना ?
एक छोटा सा वाक्या :-
मैंने कल देखा , एक आदमी ने अपने बच्चे को तिरंगा झंडा दिया , क्योंकि बच्चा बहुत ज़िद कर रहा था , उस बच्चे ने उस झंडे को 5 मिनट पकड़ा इधर उधर घुमाया फिर उसे गिरा दिया , वो आदमी ने उसे देखा पर कुछ नहीं बोला , वो लोग चल दिए , इसमें गलती उस बच्चे की नहीं बल्कि उसके पिता की है , जिसने कुछ नहीं कहा , अब जब वो बच्चा बड़ा होगा तो क्या वो उस तिरंगे की इज़्ज़त करेगा ? , महज़ खिलौना समझकर यही परंपरा आगे बढ़ाते जाएगा |
हम उस तिरंगे का सम्मान तक नहीं कर सकते तो बलिदान देने की बात तो भूल ही जाइये |
हमे उन वीरों का नाम , उनका चेहरा , जीवन परिचय नहीं पता , और 15 अगस्त को हम , व्हाट्सप्प , फेसबुक , टविटर , पर देशभक्त बन जायेंगे , अच्छा हुआ 1947 में ये सब नहीं था , नहीं तो लोग एक मेसेज को भेजकर बोलते की इस मेसेज फैलाइये और इतना लाइक शेयर कमेंट करिये की अँगरेज़ देश छोड़कर चले जाये 😂|
100 में 5 ही मिलेंगे , जो देश के प्रति कर्त्तव्य निर्वाह करेंगे , पर ये 5 ही बाकि 95 पे भारी पड़ते है |
वैसे वो तिरंगे को मैं घर ले आया , जिसे उस बच्चे ने गिरा दिया था |
एक अंतिम मौका :-
फ्रेंड्स , शायद हमे एक मौका मिल रहा है , मौका उस चीज़ का जहाँ हम आज़ादी और गुलामी के असली मायने समझ सके , अगर मैं बात करूँ किसी आदत से आज़ादी पाने की तो साइकोलॉजी के अनुसार आपको 21 दिन तक उस आदत से दूर रहना है , 22 वे दिन से वो आदत अपने आप ख़त्म हो जाएगी |
अगर बात करूँ किसी परिस्थिति से आज़ादी पाने की तो उस परिस्थिति को समझे और एक नया कदम बढ़ाएं जहाँ हम आज़ादी की तरफ बढे.
तो क्या आप तैयार है ? कमेंट में लिखकर जरूर बताएं ।
अंतिम लाइन्स :-
कहने का भाव यही है की , आज़ादी के मायने सिर्फ एक दिन या कुछ पल का नहीं रहते , न ही आज़ादी का मतलब , किसी का कहना मानना है , बल्कि इसका मतलब है , उस बंधन से अलग होना जो किसी चीज़ से बांधता है , यह लाइफ सिर्फ काम करने , पैसा बनाने , आराम करने , अपने कंफर्ट जोन में रहने के लिए बस नहीं है , बल्कि दूसरों की सेवा करने , उनको ख़ुशी देने , विकास के पथ पर सभी को एक साथ चलने के लिए मिला है , तो स्वस्थ रहिये मस्त रहिये |
STAY SAFE , STAY HOME
आज़ादी का ये दिन हम सबके लिए बहुत ज्यादा मायने रखता है , खुद को बदलिये देश जरूर बदलेगा।।✌
इसी को देखते हुए मैं एक song अपलोड कर रहा , इसे जरूर सुने , मैं दावे के साथ कह सकता ये आपको देशप्रेम में डूबा देगा।
Like Share & Comments ..... 😉
Badiya bhai..❤️
ReplyDeleteसभी शिक्षित हो... 👌👌
ReplyDeleteNice precious information for young generation
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