Wrong meaning taken by human of Ethics .
क्या मानव ने ग्रंथो को गलत मायनो में लिया ?
नमस्कार दोस्तों,
अगर कोई कहे वो भगवान को नहीं मानता तो एक आस्तिक का तौर पर हम उसे क्या बोलेंगे ? हम लोग सबसे पहले उसको हमारे धर्म ग्रन्थ की दुहाई देंगे , शास्त्रों पर भरोसा की बात करेंगे , पर क्या हम वाकई उस शास्त्र या धर्म ग्रन्थ के राह पर चल रहे है ? क्या हमारा फर्ज नहीं बनता की उस नास्तिक को हम कुछ ऐसे रहस्य के बारे में बताए जो केवल एक आस्तिक अनुभव करता है , न की नास्तिक ?
पर सवाल ये है , क्या आस्तिक को उन ग्रंथों का सही मतलब पता है ? उसमे लिखी बातें क्या सिर्फ पढ़ने और याद करने से हम ईश्वर की सत्ता को बता सकते है ?
मेरा उत्तर रहेगा बिलकुल भी नहीं |
एक नास्तिक व्यक्ति को ऐसी कौन सी बातें कहे या उसे समझाए की ईश्वर की सत्ता का यकींन वो भी करे ?
एक आस्तिक कभी नहीं कहेगा की मुझे देखो , ईश्वर मुझमे ही दिखेगा , क्यों ?
क्या किसी आस्तिक में इतनी हिम्मत नहीं की ईश्वर को अपने अंदर महसूस कर सके ?
तो इन सबका सिर्फ एक ही कारण है , और वो है हमने ग्रंथों , शास्त्रों , उपनिषद सबका मतलब गलत निकाल बैठे है |
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दोस्तों में यहाँ सिर्फ दो ही मुख्य बातों को आधार बना के चल रहा हूँ जिससे आपको भी लगेगा की यही कमी रह गयी |
1 . भावात्मकता ( abstract ) -
इसका मलतब है की हम इसे महसूस कर सकते पर | स्पर्श करना , देखना , ये संभव नहीं |
जैसे - हंसी , दुःख , प्रेम , घृणा |
इनको हम महसूस करते है , पर इनका माप करना संभव नहीं है |
2 . प्रकटीकरण (materialistic ) -
इसका अर्थ है की ये प्रकट होता है , इसे हम माप सकते है , देख सकते है , स्पर्श कर सकते है |
जैसे - कोई भी वस्तु , द्रव्य , पदार्थ |
अब यहाँ तक तो सही है पर गलती कहा हुई ?
इंसान की मुख्या गलती यही है की उसने abstract वाली चीज़ों को materialistic बना दिया , और materialistic वाली चीज़ों को abstract बना दिया |
उदाहरण 1.
( abstract से materialistic बना देना ) -
जब हम आपसी प्रेम Love affection सम्बन्ध की बात करे तो हम अपने साथी से क्या कहते है ? की तुम मुझसे कितना प्रेम करते हो ?
प्रेम वास्तव में abstract वाली चीज़ है , जिसे हमने materialistic बना दिया , प्रेम को हम बर्तन में रखे पानी के जैसे नहीं माप सकते , इसका अर्थ हमे बिगाड़ दिया है , और इसी कारण समाज में कुरीतिया आयी |
अब बात आती है ग्रन्थ की तो श्री कृष्णा और राधा के बीच का प्रेम सभी जानते है उसमे साफ़ साफ़ लिखा है , उनका प्रेम बहुत ऊँचे दर्जे का था , वो दोनों एक दूसरे में समाये थे , क्या ये बात हम नहीं जानते ? सभी जानते है पर हमने उस ग्रंथों की बात का गलत मतलब निकला , अभी का प्रेम पहले के प्रेम से पूरा अलग है , क्या ये बात किसी आस्तिक को शोभा देता है ? हम जिस ईश्वर की पूजा कर रहे उनकी बातों को हमने माना ? क्या कलयुग में कृष्ण और राधा नहीं रह सकते ?
रह सकते है , पर ईश्वर , ग्रन्थ , शास्त्र केवल पूजा करने के लिए है , हम क्यों उनकी बात माने ? है न ?
हम तो अपने आसपास के लोगों के अनुसार अपना व्यव्हार करते है , प्रेम को केवल लेने और देने की वस्तु समझ बैठे , क्यों ?
उदाहरण 2 .
( materialistic से abstract बना देना ) -
अब इसके विपरीत पहलु पर गौर करे तो जितने भी दंड , अपराध , गीता और कई शास्त्रों , वेदों में कहा गया , वो आता है |
किसी जीव की हत्या पाप है , किये तो नर्क में जाना होगा , वह कई तरह के प्रताड़ना होगा , गरुड़ पुराण में पृष्ठ 377 पर इसका पूरा वर्णन दिया है |
और हमने अपने बड़ों से भी ये बातें सुनी है और कई चित्रों , फिल्म में इसका प्रतीकात्मक रूप भी देखा है , क्या ये सब हमारे ग्रंथों , धार्मिक पुस्तकों में केवल डराने के लिए दिया है ?
दुनिया में जितने भी आस्तिक है वो ये सब बातें क्यों नहीं मानते ? ये सभी चीज़ें materialistic होती है पर हमने इसे abstract मान लिया है , हमने इसका ये गलत मतलब निकाला की वास्तव में एक नरक है जहाँ ये सब प्रताड़ना होती है , इसे हमने स्थूल रूप में लिया , पर ये चीज़ें सूक्षम रूप में उपस्थित है , ये सभी चीज़ें वास्तव में है , हाँ नरक वास्तव में है पर वो कही और नहीं बल्कि स्वयं हमारे शरीर में है , इसी धरती में है |
आजकल कई तरह की बीमारिया होती है , इंसान जीवन भर इसे लेके ढ़ोता है , जीवन भर दवाइयां ले रहा , असहाय पीड़ा सह रहा , यही तो है नर्क, साथ ही कई सारे कठिनाई भी आते है | ये सभी नरक के रूप ही है | पुस्तकों में ये बातें चित्रित रूप में बताया गया है जिसे हमे गलत भाव में ले लिए , इसीलिए इसमें लिखीं है इंसान बुरे कर्म न करे पर क्या वास्तव में सभी आस्तिक ऐसा है ? बहुत ही कम , धर्म के नाम पर , वर्ण के नाम पर झगडे कर रहे , मांस भक्षण कर रहे , अनेक पाप कर रहे , अपने ईश्वर को महान बता रहे , पर याद रखिये ईश्वर , खुद इंसान में बस्ता है , आस्तिक हो या नास्तिक वो ईश्वर हमेशा साथ है , बस खुद में ईश्वर है समझकर हमे अच्छे कर्म ही करना है |
गरुड़ पुराण के हिसाब से इंसान मरने के बाद आत्मा रूप में नरक में जाएगा , पर गीता के अध्याय 2 , श्लोक 23 में लिखा है की आत्मा को आग जला नहीं सकती , पानी गला नहीं सकती , हवा सूखा नहीं सकती , तो फिर नरक में कैसे कोई आत्मा को प्रताड़ित कर सकता है ?
इसका अर्थ ये नहीं की ये सभी गलत कथन है , कथन दोनों सही है पर हमने समझने में ही गलती कर दी |
ब्रह्मचर्य -
इसका अर्थ है मन , वचन और कर्म से गलत भावना का त्याग करना , अनेक वेदों में इसका उल्लेख मिल जाएगा , पर क्या कोई वास्तव में ब्रह्मचर्य है ? क्यों अपने उन्ही शास्त्रों की बात नहीं मानते जिसमे यही लिखा है की गृहस्थ होते हुए भी ब्रह्मचर्य में रहे , जन्म से 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य में रहे , भीष्म पितामह , तो आजीवन ब्रह्मचर्य रहे | ऐसा कोई आस्तिक नहीं जिसने ब्रह्मचर्य को भंग न किया हो , क्या अब हमे वेदों का सहारा नहीं लेना चाहिए ?
प्राचीन वेदों के अनुसार जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करेगा उसे कुछ भी बुरी भावना , छू भी नहीं सकती , वो सब शक्ति अपने वश में कर लेगा , ये है असली मायने उन ग्रंथो में लिखे वाक्यों की ,
इंसान को नित्य अच्छे कर्म में लीन होना है , खुद अच्छा करोगे तो तुम्हारा भी अच्छा ही होगा |
अपने एक आस्तिक को नास्तिक बनते बहुत देखा होगा पर , नास्तिक को आस्तिक बनते बहुत कम देखे होंगे |
एक समय में , मैं नास्तिक था , ये सभी ग्रन्थ मुझे सच नहीं लगते थे पर जब मैंने इसका खुद पठन किया तो मुझे पता चला , एक ग्रन्थ , एक धार्मिक पुस्तक , एक वेद , किसी इंसान के लिए कितना बहुमूल्य है |
हम स्कूल और कॉलेज की पुस्तकों से इंटेलीजेंट तो बन जाएंगे , पर एक इंसान हम इन्ही ग्रंथो , और धार्मिक पुस्तकों से बनते है , पर शर्त यही है की आपको इसका असली मतलब पता होना चाहिए , सिर्फ पढ़ना नहीं बल्कि असली मायने समझना चाहिए |
फंडा -
तो फंडा ये है की हमने शास्त्र का उपयोग केवल अपने बचाव हेतु किया है , कभी उसमे लिखी बातों को अमल में नहीं लाया , जिस व्यक्ति ने इसे समझा है उसके लिए फर्क नहीं पढता आप आस्तिक हो या नास्तिक , किसी भी धर्म से हो , किसी भी जाती से हो , क्योंकि इंसनियत ही है सबसे बड़ा धर्म |
आशा करता हूँ की अब आप materialistic और abstract में अंतर कर पाएंगे |
Thank you all
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