Teaching profession is just a Joke ??
शिक्षण कार्य सिर्फ एक मजाक बन गया है ???
नमस्कार मित्रों ,
Disclaimer - इस ब्लॉग के शब्दों का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है , ये मेरी अपनी राय है जिसे में आप सभी तक पंहुचना चाहता हूँ , और अगर इस बात में थोड़ी सी भी सच्चाई हो तो आप कमेंट में बता सकते है , किसी को अगर आपत्ति हो वो भी इस पर विचार रख सकते है |
मैं एक स्कूल टीचर भी रहा हूँ , और अभी कॉलेज टीचर के रूप में हूँ , और साथ ही साथ मैंने अपना स्टूडेंट लाइफ अभी अभी ख़त्म किया , वैसे हम स्टूडेंट्स हमेशा रहते है , पर मैं बेसिक क्वालिफिकेशन की बात कर रहा हूँ , मेरे अंदर अभी ये तीनो चीज़ें समाहित है , तो मैं कुछ पर्सनल ओपिनियन रख रहा हूँ |
इस ब्लॉग के टाइटल से आप समझ चुके होंगे की मैं किस बारे में बात करने जा रहा हूँ , ये ऐसा टॉपिक भी है जिससे आप सभी पढ़ने वाले प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े है और मैं दावे से कह सकता हूँ ऐसा कोई नहीं होगा जो इस फील्ड से अलग रहा हो |
और मैं ये बता दूँ की इस टॉपिक पर मैंने पहले भी फेस टू फेस लेक्चर दे चूका हूँ और सामने वालो से मेरी बहस भी हो चूकी है , ये नयी बात नहीं है |
Teaching - कहते है की दुनिया में अगर कोई रेस्पेक्टेबले जॉब है तो वो है एक टीचर की , फिर चाहे वो एक स्कूल टीचर हो या फिर कॉलेज प्रोफेसर , और शायद ही कोई होगा जिसने अपने स्कूल टीचर को भुला दिया हो , हम भले ही कितनी कक्षाएँ आगे बढ़ जाए , कितनी ही डिग्री ले ले पर वे स्कूल टीचर हमेशा याद रहते है जिन्होंने हमारे हाथ को लाठी से मारा हो , हमे घुटने टिकाएं हो , मुर्गा बनाये हो , क्लास में पूरा पीरियड हमे खड़े रखा हो , और सबसे मुख्य बात , हमे पुरे क्लास के सामने डांटा हो , इतना पढ़ने के बाद आपको अपने स्कूल टीचर जरूर याद आ गए होंगे , और आप अभी थोड़ा मुस्कुरा भी रहे होंगे |
लेकिन खास बात पता है क्या है ? की वो सब हम पर गुजरने के बाद भी हमारे अंदर उनके लिए रेस्पेक्ट आज तक ख़त्म नहीं हुआ बल्कि अब समझ आता है की वो सब हमारे साथ क्यों हुआ था , आज भी मैं अपने स्कूल टीचर से डरता हूँ , पर ये डर उस तरह का नहीं रहता जो बुरा हो , ये एक अच्छा डर होता है , अगर रास्तें में दिख जाए तो उनको प्रणाम करता हूँ , और आप सभी भी ऐसा करते है , क्योंकि हम सभी अपने पहले स्कूल टीचर को याद रखते है |
ये तो हुई स्कूल टीचर की बात , पर अगर कॉलेज टीचर की बात करे तो मैं ये कहूंगा यहाँ हम अपने बुद्धिमता से काम लेते थे , स्कूल में टीचर का व्यक्तित्व नापने का पैमाना उनका सरल स्वाभाव था , जो कम मारे वो ज्यादा अच्छे , पर कॉलेज में अब ये मारना , डांटना उतना नहीं चलता बल्कि ना के बराबर , तो यहाँ हम बुद्धिमता का पैमाना उपयोग करते है , जो टीचर अधिक ज्ञान रखे , वो सबसे अच्छे |
हमने हमेशा ये दो लाइन सुना ही है -
गुरु गोविन्द दोउ खड़े , काके लागु पाए ?
बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो बताए |
अगर हमारे सामने गुरु और गोविंद ( god ) दोनों खड़े हो तो हमे सबसे पहले गुरु का आर्शीवाद लेना चाहिए , क्योंकिं वो गुरु ही होते है जिन्होंने हमे गोविँद तक जाने के रास्ता बताया है |
लेकिन मेरा प्रश्न ये है की क्या वो क्लास अभी तक वैसा का वैसा रहा है ? क्या अब स्कूलों और कॉलेजों में वैसा कुछ होता है ? क्या वर्तमान में भी टीचर्स के लिए वैसा रेस्पेक्ट हमारे अंदर मौजूद है ? आपमें से 99 प्रतिशत लोगो का जवाब ना में आएगा , शहरों के साथ अब गावों में भी ऐसा ट्रेंड चल रहा की टीचर को सामने में रेस्पेक्ट दो और उनके पीछे उनको कुछ भी बोल दो , हाँ या ना ???
कारण क्या है ?
जब मैंने इसका एक एनालिसिस किया तो मुझे ये कारण नज़र आया है , अगर हम स्कूल की बात करे , सबसे बड़ा कारण हम टीचर्स खुद ही होते है |
टीचिंग मार्केट
सन 2010 के बाद से स्कूलों का मॉडर्न होना स्टार्ट हो गया था , एक रेस चला था , प्राइवेट स्कूल vs सरकारी स्कूल की | प्राइवेट स्कूल में जितने ज्यादा बच्चे हो उतना ही ज्यादा फीस आएगा , स्कूलों की आमदनी होगी , मानता हूँ की पैसा की भी अलग जगह है अपने में ये भी जरुरी है पर क्या इसे मार्केट बनाने में टीचर्स का खुद का हाथ नहीं है ? पालक सोचते है हम बच्चो को पैसा देके पढ़ा रहे है , तो हमारे बच्चों को छूने का भी अधिकार टीचर को नहीं है , इधर टीचर सोचते है की बच्चा कम हुआ तो फीस कम होगी , हमारी कमाई नहीं होगी | और सरकारी स्कूल की बात करे तो यहाँ टीचर की सोच है , पैसा सरकार दे ही रहा रहा है , तो ज्यादा मेहनत क्यों करना , बच्चे फ्री में तो पढ़ रहे | हाँ या ना ? आजकल ऐसा है हम बच्चे को डांट भी दे पालक स्कूल आ जाएंगे , कॉलेज में तो इस पर राजनीती चलती है , पर कोई स्टूडेंट नहीं सोचता की कोई टीचर हमे हमारी गलतियों पर डांट रहे वो हमारे भले क लिए ही है |
टीचिंग जॉब सरल है
अक्सर आपने लोगों के मुँह से सुना है टीचिंग का जॉब सबसे सरल है , बस कमरे में जाके बैठ जाओ , और बच्चे पढ़ते रहेंगे , बैठे बैठे पैसे मिलते है , और वो बोले भी क्यों नहीं क्योंकि अब टीचर्स , स्कूल में पढ़ाने के के सिवा दूसरा एक्टिविटी बहुत ही कम कराते है , टीचर्स की ही सोच रहती की पढ़ने लिखने से ही भला होगा , खेल - खेलना , इधर उधर घूमना , ये सब केवल वक्त की बर्बादी है , शहरों में तो चलिए अब दूसरा कार्य होता भी है पर अधिकतर अगर प्राइवेट स्कूल की बात करे तो परीक्षा में नंबर लाना को ज्यादा अहमियत दिया जाता है , और ये सही है क्योंकिं आपने सुना ही होगा टीचर्स कहते है * अब तो पढाई करो , परीक्षा आने वाली है * || हाँ या ना ? , टीचर्स ने बच्चो के सर्वांगीण विकास हेतु कार्यक्रम बनाना कम कर दिया है |
स्टूडेंट्स को ट्रीट कैसे करे ?
मैंने ये देखा है हमने इस लाइन का गलत मतलब निकाल लिया है * टीचर्स को स्टूडेंट्स के साथ दोस्त जैसे रहना चाहिए * , यहाँ ये लाइन इसलिए बोली गयी थी ताकि स्टूडेंट्स अपने टीचर्स से डरे नहीं , वो अपनी समस्याएं अपने टीचर्स को बता सके , ताकि उनका समाधान हो सके , पर आजकल ये * दोस्त जैसे * शब्द केवल * दोस्त * बनकर रह गए | सोशल मीडिया पे बातें करना , क्लास में किसी एक स्टूडेंट्स को पॉइंट करके मस्ती मजाक करना , सोशल मीडिया में अक्सर देर तक बातें होती रहती है , चलिए हम हालचाल पूछ लिए अच्छा है पर अक्सर ज्यादा बातें करना ही होता है | हंसी मजाक की लिमिट भी कभी कभी क्रॉस हो जाती है | क्या ऐसे में स्टूडेंट्स के अंदर टीचर्स के लिए रेस्पेक्ट होगा ? हाँ या ना ?
टीचिंग जॉब मिलने में आसानी
मैं समझता हूँ की सबसे बड़ा कारण जिससे आजकल टीचिंग प्रोफेशन अब उतना रिस्पेक्टफुल नहीं रह गया , वो है की ये जॉब आसानी से मिल जाती है | आपको कंप्यूटर जॉब चाहिए तो कंप्यूटर चलाना आना चाहिए , टाइपिस्ट की जॉब चाहिए तो टाइपिंग आना चाहिए , पर टीचिंग जॉब चाहिए तो आप बड़ी क्वालिफिकेशन ले आइये , जैसे स्नातक या स्नातकोत्तर , आपको जॉब मिल जाएगी , हालाँकि इसके लिए अलग से एजुकेशन कोर्स करना पड़ता है पर बिना कम्पलीट किये भी प्राइवेट स्कूल , कॉलेज में जॉब मिल जाती है | मैं सरकारी नहीं प्राइवेट की बात कर रहा क्योंकि अधिकतर बच्चे प्राइवेट को ज्यादा महत्व देते है , और यहाँ टीचर की नियुक्ति के लिए बिना अधिक क्वालिफिकेशन वाले को भी जगह देते है , चलिए मान लिया कोई 12 वी पास इंसान कक्षा 1 से 8 पढ़ा सकता है तो इसका मतलब ये भी तो नहीं की आप उसे टीचर ही बना दो ? अब तो बच्चे खुद पढ़ रहे है और साथ में स्कूल भी जा रहे , ये ऐसा हुआ की सीखे भी नहीं और सीखने चले गए |
मैं ये नही कह रहा की 12 वी , स्नातक पास उसके लायक नहीं पर टीचिंग प्रोफेशन में आप पुरे कक्षा के बच्चो का भविष्य उसके हाथ में दे दे , ये कहा तक सही है ? उससे ज्यादा काबिल लोग भी है , आप उन्हें मौका दे सकते , चलिए अब तो कई जगह इंटरव्यू होता है पर 100 में 40 जगह ऐसे मिलेगी जहाँ सीधे ले लिया जाता है , क्या वो 40 जगह के बच्चे का भविष्य मायने नहीं रखता ?
अब तो एलिजिब्लिटी टेस्ट होते है , अगर सीधे तौर पर टीचिंग के लिए लेना ही है तो उनको नियुक्त कर सकते है , जिसने ये सब टेस्ट पास किये हो |
समस्या को जन्म देती ये ख़राब तकनीक
अब अगर टीचर्स के लिए हमने ऐसे ही लोगों को ले लिया तो सोचिये क्या होगा ? सोचने की भी जरुरत नहीं बल्कि ये हो भी रहा है , अब स्कूल , कॉलेज में एक स्टूडेंट् को केवल पुस्तक का ज्ञान दिया जा रहा है , अब स्कूल और कॉलेज में इंसान नहीं बल्कि रोबोट बन रहे , आप डिग्री लीजिये , नौकरी कीजिये , न मिले तो सुसाइड कीजिये | अभी परसो के ही न्यूज़ पेपर में आया था की 2 लोगों ने बेरोजगारी के नाम पर आत्महत्या कर लिया , क्या ये हमारी त्रुटिपूर्वक शिक्षण का नतीजा नहीं है ?
आजकल के बच्चों में चाहे वो स्कूल के हो या कॉलेज के , क्या इंसानियत की मात्रा मौजूद है ? क्या टीचर्स ने सिखाया की अच्छा इंसान कैसे बनना है ? समस्यायों का समाधान कैसे करे ? यहाँ तो रेस चल रही , जो जीता वही सिकंदर , जो हारा बन्दर |
क्यों जीवन के असली मायने सिखने के लिए केवल अनुभव पर जोर दिया जाता है , की बच्चा अनुभव करके सिख लेगा ?
ये तो ऐसे हो गया की - टीचर्स ने बच्चो को नहीं बताया की जहर पिने से मरते है क्योंकि टीचर्स चाहते है बच्चे खुद अनुभव करे | ये अजीब नहीं है ?
ये भले ही आसान लग रहा है पर आज के स्टूडेंट्स में अपने टीचर के लिए रेस्पेक्ट का ख़त्म होना , दुनिया के लिए संवेदनशीलता का ख़त्म होना , अपने से बड़ों के लिए इज़्ज़त का ख़त्म होना इन सबसे सबसे ज्यादा जिम्मेदार हम टीचर्स ही होते है , क्योंकि भले ही बच्चा 24 में से 6 घंटे स्कूल या कॉलेज में बिताये , पर यही 6 घंटे उसके 60 साल के ज़िन्दगी का असली आधार होता है |
निष्कर्ष
स्कूल , कॉलेज में पढ़ाना अच्छी बात है पर अगर हम ऐसे टीचर को ले जिनमे काबिलियत है , जो बच्चो को पुस्तक के आलावा ज़िन्दगी के पाठ भी पढ़ाए तो शायद हम पुरे एजुकेशन सिस्टम सकते है , टीचिंग ही वो जॉब है जिस पर पूरी दुनिया का आधार टिका हुआ है , और जो टीचर बन चुके है उनको चाहिए की स्टूडेंट्स को सभी तरह से सपोर्ट करे , पर इसका ये मतलब भी नहीं की अपने आदर्श होने का पैमाना भी खो दे | जहाँ टीचर्स को आदर्श रूप में होना चाहिए वहां अब कुछ दूसरा चित्र मिल रहा है |
एक बच्चे के लिए टीचर आदर्श होते है , बाकि आदर्श दूसरे नंबर पर आते है , चाहे वो स्कूल टीचर हो या कॉलेज टीचर |
TEACHING IS JUST NOT JOB , THIS MAKES THE WAY WHERE THE WHOLE WORLD GOE'S ........
शिक्षक भविष्य निर्माता भी है , और एक विध्वंसक भी |
मेरी लाइफ में अब तक चार टीचर्स ऐसे है , जिन्होंने मुझे सिर्फ पुस्तक का ज्ञान नही दिया बल्कि जीवन के बारे में भी सिखाए है ।
Mr. Lochan Sinha ( my school teacher )
Mr. Lekh ram sahu ( my graduation teacher , motivates me and put the seed of curiosity in my mind about physics. )
Mr. Goverdhan yadu ( my msc teacher , flourish the plant of physics in my mind )
Mr. Pramod sir ( keep me motivated and solve the problems of my doubt )
|| Deeply sorry to those teacher's or student's who got hurt by this blog's word ||
SHARE TO AWARE STUDENT'S AND TEACHER'S .....
Fact hai...
ReplyDeleteTeachers hi bachhon ko jyada dhil de dete hai jiske karan bachhe unhe bahut lightly le Lete hai
True 😊
ReplyDeleteविचारणीय तथ्य सर 🙏🙏🙏
ReplyDelete